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دسته بندی: دین ویرایش: نویسندگان: Valmiki. वाल्मीकि سری: ناشر: Gita Press Gorakhpur سال نشر: 2017 تعداد صفحات: 0 زبان: Hindi فرمت فایل : MOBI (درصورت درخواست کاربر به PDF، EPUB یا AZW3 تبدیل می شود) حجم فایل: 15 مگابایت
کلمات کلیدی مربوط به کتاب Shrimad Valmiki Ramayana - Shrimad Valmiki Ramayana (نسخه هندی) برای Kindle: هندوئیسم
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توجه داشته باشید کتاب Shrimad Valmiki Ramayana - Shrimad Valmiki Ramayana (نسخه هندی) برای Kindle نسخه زبان اصلی می باشد و کتاب ترجمه شده به فارسی نمی باشد. وبسایت اینترنشنال لایبرری ارائه دهنده کتاب های زبان اصلی می باشد و هیچ گونه کتاب ترجمه شده یا نوشته شده به فارسی را ارائه نمی دهد.
शीर्षक कॉपीराइट नम्र निवेदन १. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायणकी पाठविधि अध्याय (श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणमाहात्म्यम्) १ कलियुगकी स्थिति, कलिकालके मनुष्योंके उद्धारका उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवणके लिये उत्तम काल आदिका वर्णन २ नारद-सनत्कुमार-संवाद, सुदास या सोमदत्त नामक ब्राह्मणको राक्षसत्वकी प्राप्ति तथा रामायण-कथा-श्रवणद्वारा उससे उद्धार ३ माघमासमें रामायण-श्रवणका फल—राजा सुमति और सत्यवतीके पूर्वजन्मका इतिहास ४ चैत्रमासमें रामायणके पठन और श्रवणका माहात्म्य, कलिक नामक व्याध और उत्तङ्क मुनिकी कथा ५ रामायणके नवाह श्रवणकी विधि, महिमा तथा फलका वर्णन १. बालकाण्ड १ नारदजीका वाल्मीकि मुनिको संक्षेपसे श्रीराम-चरित्र सुनाना २ रामायणकाव्यका उपक्रम—तमसाके तटपर क्रौञ्चवधसे संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकिके शोकका श्लोकरूपमें प्रकट होना तथा ब्रह्माजीका उन्हें रामचरित्रमय काव्यके निर्माणका आदेश देना ३ वाल्मीकि मुनिद्वारा रामायणकाव्यमें निबद्ध विषयोंका संक्षेपसे उल्लेख ४ महर्षि वाल्मीकिका चौबीस हजार श्लोकोंसे युक्त रामायणकाव्यका निर्माण करके उसे लव-कुशको पढ़ाना, मुनिमण्डलीमें रामायणगान करके लव और कुशका प्रशंसित होना तथा अयोध्यामें श्रीरामद्वारा सम्मानित हो उन दोनोंका रामदरबारमें रामायणगान सुनाना ५ राजा दशरथद्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरीका वर्णन ६ राजा दशरथके शासनकालमें अयोध्या और वहाँके नागरिकोंकी उत्तम स्थितिका वर्णन ७ राजमन्त्रियोंके गुण और नीतिका वर्णन ८ राजाका पुत्रके लिये अश्वमेधयज्ञ करनेका प्रस्ताव और मन्त्रियों तथा ब्राह्मणोंद्वारा उनका अनुमोदन ९ सुमन्त्रका राजाको ऋष्यश्रृङ्ग मुनिको बुलानेकी सलाह देते हुए उनके अङ्गदेशमें जाने और शान्तासे विवाह करनेका प्रसङ्ग सुनाना १० अङ्गदेशमें ऋष्यश्रृङ्गके आने तथा शान्ताके साथ विवाह होनेके प्रसङ्गका कुछ विस्तारके साथ वर्णन ११ सुमन्त्रके कहनेसे राजा दशरथका सपरिवार अङ्गराजके यहाँ जाकर वहाँसे शान्ता और ऋष्यश्रृङ्गको अपने घर ले आना १२ राजाका ऋषियोंसे यज्ञ करानेके लिये प्रस्ताव, ऋषियोंका राजाको और राजाका मन्त्रियोंको यज्ञकी आवश्यक तैयारी करनेके लिये आदेश देना १३ राजाका वसिष्ठजीसे यज्ञकी तैयारीके लिये अनुरोध, वसिष्ठजीद्वारा इसके लिये सेवकोंकी नियुक्ति और सुमन्त्रको राजाओंको बुलानेके लिये आदेश, समागत राजाओंका सत्कार तथा पत्नियों-सहित राजा दशरथका यज्ञकी दीक्षा लेना १४ महाराज दशरथके द्वारा अश्वमेध यज्ञका साङ्गोपाङ्ग अनुष्ठान १५ ऋष्यश्रृङ्गद्वारा राजा दशरथके पुत्रेष्टि यज्ञका आरम्भ, देवताओंकी प्रार्थनासे ब्रह्माजीका रावणके वधका उपाय ढूँढ़ निकालना तथा भगवान् विष्णुका देवताओंको आश्वासन देना १६ देवताओंका श्रीहरिसे रावणवधके लिये मनुष्यरूपमें अवतीर्ण होनेको कहना, राजाके पुत्रेष्टि यज्ञमें अग्निकुण्डसे प्राजापत्य पुरुषका प्रकट होकर खीर अर्पण करना और उसे खाकर रानियोंका गर्भवती होना १७ ब्रह्माजीकी प्रेरणासे देवता आदिके द्वारा विभिन्न वानरयूथपतियोंकी उत्पत्ति १८ राजाओं तथा ऋष्यश्रृङ्गको विदा करके राजा दशरथका रानियोंसहित पुरीमें आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नके जन्म, संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबारमें विश्वामित्रका आगमन और उनका सत्कार १९ विश्वामित्रके मुखसे श्रीरामको साथ ले जानेकी माँग सुनकर राजा दशरथका दु:खित एवं मूर्च्छित होना २० राजा दशरथका विश्वामित्रको अपना पुत्र देनेसे इनकार करना और विश्वामित्रका कुपित होना २१ विश्वामित्रके रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठका राजा दशरथको समझाना २२ राजा दशरथका स्वस्तिवाचनपूर्वक राम-लक्ष्मणको मुनिके साथ भेजना, मार्गमें उन्हें विश्वामित्रसे बला और अतिबला नामक विद्याकी प्राप्ति २३ विश्वामित्रसहित श्रीराम और लक्ष्मणका सरयू-गङ्गा-संगमके समीप पुण्य आश्रममें रातको ठहरना २४ श्रीराम और लक्ष्मणका गङ्गापार होते समय विश्वामित्रजीसे जलमें उठती हुर्इ तुमुलध्वनिके विषयमें प्रश्न करना, विश्वामित्रजीका उन्हें इसका कारण बताना तथा मलद, करूष एवं ताटका वनका परिचय देते हुए इन्हें ताटकावधके लिये आज्ञा प्रदान करना. २५ श्रीरामके पूछनेपर विश्वामित्रजीका उनसे ताटकाकी उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदिका प्रसङ्ग सुनाकर उन्हें ताटकावधके लिये प्रेरित करना २६ श्रीरामद्वारा ताटकाका वध २७ विश्वामित्रद्वारा श्रीरामको दिव्यास्त्र-दान २८ विश्वामित्रका श्रीरामको अस्त्रोंकी संहारविधि बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रोंका उपदेश करना, श्रीरामका एक आश्रम एवं यज्ञस्थानके विषयमें मुनिसे प्रश्न २९ विश्वामित्रजीका श्रीरामसे सिद्धाश्रमका पूर्ववृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयोंके साथ अपने आश्रमपर पहुँचकर पूजित होना ३० श्रीरामद्वारा विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा तथा राक्षसोंका संहार ३१ श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियोंसहित विश्वामित्रका मिथिलाको प्रस्थान तथा मार्गमें संध्याके समय शोणभद्रतटपर विश्राम ३२ ब्रह्मपुत्र कुशके चार पुत्रोंका वर्णन, शोणभद्र-तटवर्ती प्रदेशको वसुकी भूमि बताना, कुशनाभकी सौ कन्याओंका वायुके कोपसे ‘कुब्जा’ होना ३३ राजा कुशनाभद्वारा कन्याओंके धैर्य एवं क्षमाशीलताकी प्रशंसा, ब्रह्मदत्तकी उत्पत्ति तथा उनके साथ कुशनाभकी कन्याओंका विवाह ३४ गाधिकी उत्पत्ति, कौशिकीकी प्रशंसा, विश्वामित्रजीका कथा बंद करके आधी रातका वर्णन करते हुए सबको सोनेकी आज्ञा देकर शयन करना ३५ शोणभद्र पार करके विश्वामित्र आदिका गङ्गाजीके तटपर पहुँचकर वहाँ रात्रिवास करना तथा श्रीरामके पूछनेपर विश्वामित्रजीका उन्हें गङ्गाजीकी उत्पत्तिकी कथा सुनाना ३६ देवताओंका शिव-पार्वतीको सुरतक्रीडासे निवृत्त करना तथा उमादेवीका देवताओं और पृथ्वीको शाप देना ३७ गङ्गासे कार्तिकेयकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग ३८ राजा सगरके पुत्रोंकी उत्पत्ति तथा यज्ञकी तैयारी ३९ इन्द्रके द्वारा राजा सगरके यज्ञसम्बन्धी अश्वका अपहरण, सगरपुत्रोंद्वारा सारी पृथ्वीका भेदन तथा देवताओंका ब्रह्माजीको यह सब समाचार बताना ४० सगरपुत्रोंके भावी विनाशकी सूचना देकर ब्रह्माजीका देवताओंको शान्त करना, सगरके पुत्रोंका पृथ्वीको खोदते हुए कपिलजीके पास पहुँचना और उनके रोषसे जलकर भस्म होना ४१ सगरकी आज्ञासे अंशुमान्का रसातलमें जाकर घोड़ेको ले आना और अपने चाचाओंके निधनका समाचार सुनाना ४२ अंशुमान् और भगीरथकी तपस्या, ब्रह्माजीका भगीरथको अभीष्ट वर देकर गङ्गाजीको धारण करनेके लिये भगवान् शंकरको राजी करनेके निमित्त प्रयत्न करनेकी सलाह देना ४३ भगीरथकी तपस्यासे संतुष्ट हुए भगवान् शंकरका गङ्गाको अपने सिरपर धारण करके बिन्दुसरोवरमें छोड़ना और उनका सात धाराओंमें विभक्त हो भगीरथके साथ जाकर उनके पितरोंका उद्धार करना ४४ ब्रह्माजीका भगीरथकी प्रशंसा करते हुए उन्हें गङ्गाजलसे पितरोंके तर्पणकी आज्ञा देना और राजाका वह सब करके अपने नगरको जाना, गङ्गावतरणके उपाख्यानकी महिमा ४५ देवताओं और दैत्योंद्वारा क्षीर-समुद्र-मन्थन, भगवान् रुद्रद्वारा हालाहल विषका पान, सर्ग विषय पृष्ठ-संख्या सर्ग विषय पृष्ठ-संख्या (१०) भगवान् विष्णुके सहयोगसे मन्दराचलका पातालसे उद्धार और उसके द्वारा मन्थन, धन्वन्तरि, अप्सरा, वारुणी, उच्चै:श्रवा, कौस्तुभ तथा अमृतकी उत्पत्ति और देवासुर-संग्राममें दैत्योंका संहार ४६ पुत्रवधसे दु:खी दितिका कश्यपजीसे इन्द्रहन्ता पुत्रकी प्राप्तिके उद्देश्यसे तपके लिये आज्ञा लेकर कुशप्लवमें तप करना, इन्द्रद्वारा उनकी परिचर्या तथा उन्हें अपवित्र अवस्थामें पाकर इन्द्रका उनके गर्भके सात टुकड़े कर डालना ४७ दितिका अपने पुत्रोंको मरुद्गण बनाकर देवलोकमें रखनेके लिये इन्द्रसे अनुरोध, इन्द्रद्वारा उसकी स्वीकृति, दितिके तपोवनमें ही इक्ष्वाकु-पुत्र विशालद्वारा विशाला नगरीका निर्माण तथा वहाँके तत्कालीन राजा सुमतिद्वारा विश्वामित्र मुनिका सत्कार ४८ राजा सुमतिसे सत्कृत हो एक रात विशालामें रहकर मुनियोंसहित श्रीरामका मिथिलापुरीमें पहुँचना और वहाँ सूने आश्रमके विषयमें पूछनेपर विश्वामित्रजीका उनसे अहल्याको शाप प्राप्त होनेकी कथा सुनाना ४९ पितृदेवताओंद्वारा इन्द्रको भेड़ेके अण्डकोषसे युक्त करना तथा भगवान् श्रीरामके द्वारा अहल्याका उद्धार एवं उन दोनों दम्पतिके द्वारा इनका सत्कार ५० श्रीराम आदिका मिथिला-गमन, राजा जनकद्वारा विश्वामित्रका सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मणके विषयमें जिज्ञासा करना एवं परिचय पाना ५१ शतानन्दके पूछनेपर विश्वामित्रका उन्हें श्रीरामके द्वारा अहल्याके उद्धारका समाचार बताना तथा शतानन्दद्वारा श्रीरामका अभिनन्दन करते हुए विश्वामित्रजीके पूर्वचरित्रका वर्णन ५२ महर्षि वसिष्ठद्वारा विश्वामित्रका सत्कार और कामधेनुको अभीष्ट वस्तुओंकी सृष्टि करनेका आदेश ५३ कामधेनुकी सहायतासे उत्तम अन्न-पानद्वारा सेनासहित तृप्त हुए विश्वामित्रका वसिष्ठसे उनकी कामधेनुको माँगना और उनका देनेसे अस्वीकार करना ५४ विश्वामित्रका वसिष्ठजीकी गौको बलपूर्वक ले जाना, गौका दु:खी होकर वसिष्ठजीसे इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञासे शक, यवन, पह्लव आदि वीरोंकी सृष्टि करके उनके द्वारा विश्वामित्रजीकी सेनाका संहार करना ५५ अपने सौ पुत्रों और सारी सेनाके नष्ट हो जानेपर विश्वामित्रका तपस्या करके महादेवजीसे दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठके आश्रमपर प्रयोग करना एवं वसिष्ठजीका ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना ५६ विश्वामित्रद्वारा वसिष्ठजीपर नाना प्रकारके दिव्यास्त्रोंका प्रयोग और वसिष्ठद्वारा ब्रह्मदण्डसे ही उनका शमन एवं विश्वामित्रका ब्राह्मणत्वकी प्राप्तिके लिये तप करनेका निश्चय ५७ विश्वामित्रकी तपस्या, राजा त्रिशङ्कुका अपना यज्ञ करानेके लिये पहले वसिष्ठजीसे प्रार्थना करना और उनके इनकार कर देनेपर उन्हींके पुत्रोंकी शरणमें जाना ५८ वसिष्ठ ऋषिके पुत्रोंका त्रिशङ्कुको डाँट बताकर घर लौटनेके लिये आज्ञा देना तथा उन्हें दूसरा पुरोहित बनानेके लिये उद्यत देख शाप-प्रदान और उनके शापसे चाण्डाल हुए त्रिशङ्कुका विश्वामित्रजीकी शरणमें जाना ५९ विश्वामित्रका त्रिशङ्कुको आश्वासन देकर उनका यज्ञ करानेके लिये ऋषि-मुनियोंको आमन्त्रित करना और उनकी बात न माननेवाले महोदय तथा ऋषिपुत्रोंको शाप देकर नष्ट करना ६० विश्वामित्रका ऋषियोंसे त्रिशङ्कुका यज्ञ करानेके लिये अनुरोध, ऋषियोंद्वारा यज्ञका आरम्भ, त्रिशङ्कुका सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्रद्वारा स्वर्गसे उनके गिराये जानेपर क्षुब्ध हुए विश्वामित्रका नूतन देवसर्गके लिये उद्योग, फिर देवताओंके अनुरोधसे उनका इस कार्यसे विरत होना ६१ विश्वामित्रकी पुष्करतीर्थमें तपस्या तथा राजर्षि अम्बरीषका ऋचीकके मध्यम पुत्र शुन:शेपको यज्ञ-पशु बनानेके लिये खरीदकर लाना ६२ विश्वामित्रद्वारा शुन:शेपकी रक्षाका सफल प्रयत्न और तपस्या ६३ विश्वामित्रको ऋषि एवं महर्षिपदकी प्राप्ति, मेनकाद्वारा उनका तपोभङ्ग तथा ब्रह्मर्षिपदकी प्राप्तिके लिये उनकी घोर तपस्या ६४ विश्वामित्रका रम्भाको शाप देकर पुन: घोर तपस्याके लिये दीक्षा लेना ६५ विश्वामित्रकी घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति तथा राजा जनकका उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवनको लौटना ६६ राजा जनकका विश्वामित्र और राम-लक्ष्मणका सत्कार करके उन्हें अपने यहाँ रखे हुए धनुषका परिचय देना और धनुष चढ़ा देनेपर श्रीरामके साथ उनके ब्याहका निश्चय प्रकट करना ६७ श्रीरामके द्वारा धनुर्भङ्ग तथा राजा जनकका विश्वामित्रकी आज्ञासे राजा दशरथको बुलानेके लिये मन्त्रियोंको भेजना ६८ राजा जनकका संदेश पाकर मन्त्रियोंसहित महाराज दशरथका मिथिला जानेके लिये उद्यत होना ६९ दल-बलसहित राजा दशरथकी मिथिलायात्रा और वहाँ राजा जनकके द्वारा उनका स्वागत-सत्कार ७० राजा जनकका अपने भार्इ कुशध्वजको सांकाश्या नगरीसे बुलवाना, राजा दशरथके अनुरोधसे वसिष्ठजीका सूर्यवंशका परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मणके लिये सीता तथा ऊर्मिलाको वरण करना ७१ राजा जनकका अपने कुलका परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मणके लिये क्रमश: सीता और ऊर्मिलाको देनेकी प्रतिज्ञा करना ७२ विश्वामित्रद्वारा भरत और शत्रुघ्नके लिये कुशध्वजकी कन्याओंका वरण, राजा जनकद्वारा इसकी स्वीकृति तथा राजा दशरथका अपने पुत्रोंके मङ्गलके लिये नान्दीश्राद्ध एवं गोदान करना ७३ श्रीराम आदि चारों भाइयोंका विवाह ७४ विश्वामित्रका अपने आश्रमको प्रस्थान, राजा जनकका कन्याओंको भारी दहेज देकर राजा दशरथ आदिको विदा करना, मार्गमें शुभाशुभ शकुन और परशुरामजीका आगमन ७५ राजा दशरथकी बात अनसुनी करके परशुरामका श्रीरामको वैष्णव-धनुषपर बाण चढ़ानेके लिये ललकारना ७६ श्रीरामका वैष्णव-धनुषको चढ़ाकर अमोघ बाणके द्वारा परशुरामके तप:प्राप्त पुण्यलोकोंका नाश करना तथा परशुरामका महेन्द्रपर्वतको लौट जाना ७७ राजा दशरथका पुत्रों और वधुओंके साथ अयोध्यामें प्रवेश, शत्रुघ्नसहित भरतका मामाके यहाँ जाना, श्रीरामके बर्तावसे सबका संतोष तथा सीता और श्रीरामका पारस्परिक प्रेम २. अयोध्याकाण्ड १ श्रीरामके सद्गुणोंका वर्णन, राजा दशरथका श्रीरामको युवराज बनानेका विचार तथा विभिन्न नरेशों और नगर एवं जनपदके लोगोंको मन्त्रणाके लिये अपने दरबारमें बुलाना २ राजा दशरथद्वारा श्रीरामके राज्याभिषेकका प्रस्ताव तथा सभासदोंद्वारा श्रीरामके गुणोंका वर्णन करते हुए उक्त प्रस्तावका सहर्ष युक्तियुक्त समर्थन ३ राजा दशरथका वसिष्ठ और वामदेवजीको श्रीरामके राज्याभिषेककी तैयारी करनेके लिये कहना और उनका सेवकोंको तदनुरूप आदेश देना, राजाकी आज्ञासे सुमन्त्रका श्रीरामको राजसभामें बुला लाना और राजाका अपने पुत्र श्रीरामको हितकर राजनीतिकी बातें बताना ४ श्रीरामको राज्य देनेका निश्चय करके राजाका सुमन्त्रद्वारा पुन: श्रीरामको बुलवाकर उन्हें आवश्यक बातें बताना, श्रीरामका कौसल्याके भवनमें जाकर माताको यह समाचार बताना और मातासे आशीर्वाद पाकर लक्ष्मणसे प्रेमपूर्वक वार्तालाप करके अपने महलमें जाना ५ राजा दशरथके अनुरोधसे वसिष्ठजीका सीता-सहित श्रीरामको उपवासव्रतकी दीक्षा देकर आना और राजाको इस समाचारसे अवगत कराना, राजाका अन्त:पुरमें प्रवेश ६ सीतासहित श्रीरामका नियमपरायण होना, हर्षमें भरे पुरवासियोंद्वारा नगरकी सजावट, राजाके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा अयोध्यापुरीमें जनपदवासी मनुष्योंकी भीड़का एकत्र होना ७ श्रीरामके अभिषेकका समाचार पाकर खिन्न हुर्इ मन्थराका कैकेयीको उभाड़ना, परंतु प्रसन्न हुर्इ कैकेयीका उसे पुरस्काररूपमें आभूषण देना और वर माँगनेके लिये प्रेरित करना ८ मन्थराका पुन: श्रीरामके राज्याभिषेकको कैकेयीके लिये अनिष्टकारी बताना, कैकेयीका श्रीरामके गुणोंको बताकर उनके अभिषेकका समर्थन करना तत्पश्चात् कुब्जाका पुन: श्रीरामराज्यको भरतके लिये भयजनक बताकर कैकेयीको भड़काना ९ कुब्जाके कुचक्रसे कैकेयीका कोपभवनमें प्रवेश १० राजा दशरथका कैकेयीके भवनमें जाना, उसे कोपभवनमें स्थित देखकर दु:खी होना और उसको अनेक प्रकारसे सान्त्वना देना ११ कैकेयीका राजाको प्रतिज्ञाबद्ध करके उन्हें पहलेके दिये हुए दो वरोंका स्मरण दिलाकर भरतके लिये अभिषेक और रामके लिये चौदह वर्षोंका वनवास माँगना १२ महाराज दशरथकी चिन्ता, विलाप, कैकेयीको फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगनेके लिये अनुरोध करना १३ राजाका विलाप और कैकेयीसे अनुनयविनय १४ कैकेयीका राजाको सत्यपर दृढ़ रहनेके लिये प्रेरणा देकर अपने वरोंकी पूर्तिके लिये दुराग्रह दिखाना, महर्षि वसिष्ठका अन्त:पुरके द्वारपर आगमन और सुमन्त्रको महाराजके पास भेजना, राजाकी आज्ञासे सुमन्त्रका श्रीरामको बुलानेके लिये जाना १५ सुमन्त्रका राजाकी आज्ञासे श्रीरामको बुलानेके लिये उनके महलमें जाना १६ सुमन्त्रका श्रीरामके महलमें पहुँचकर महाराजका संदेश सुनाना और श्रीरामका सीतासे अनुमति ले लक्ष्मणके साथ रथपर बैठकर गाजे-बाजेके साथ मार्गमें स्त्री-पुरुषोंकी बातें सुनते हुए जाना १७ श्रीरामका राजपथकी शोभा देखते और सुहृदोंकी बातें सुनते हुए पिताके भवनमें प्रवेश १८ श्रीरामका कैकेयीसे पिताके चिन्तित होनेका कारण पूछना और कैकेयीका कठोरतापूर्वक अपने माँगे हुए वरोंका वृत्तान्त बताकर श्रीरामको वनवासके लिये प्रेरित करना १९ श्रीरामकी कैकेयीके साथ बातचीत और वनमें जाना स्वीकार करके उनका माता कौसल्याके पास आज्ञा लेनेके लिये जाना २० राजा दशरथकी अन्य रानियोंका विलाप, श्रीरामका कौसल्याजीके भवनमें जाना और उन्हें अपने वनवासकी बात बताना, कौसल्याका अचेत होकर गिरना और श्रीरामके उठा देनेपर उनकी ओर देखकर विलाप करना २१ लक्ष्मणका रोष, उनका श्रीरामको बलपूर्वक राज्यपर अधिकार कर लेनेके लिये प्रेरित करना तथा श्रीरामका पिताकी आज्ञाके पालनको ही धर्म बताकर माता और लक्ष्मणको समझाना २२ श्रीरामका लक्ष्मणको समझाते हुए अपने वनवासमें दैवको ही कारण बताना और अभिषेककी सामग्रीको हटा लेनेका आदेश देना २३ लक्ष्मणकी ओजभरी बातें, उनके द्वारा दैवका खण्डन और पुरुषार्थका प्रतिपादन तथा उनका श्रीरामके अभिषेकके निमित्त विरोधियोंसे लोहा लेनेके लिये उद्यत होना २४ विलाप करती हुर्इ कौसल्याका श्रीरामसे अपनेको भी साथ ले चलनेके लिये आग्रह करना तथा पतिकी सेवा ही नारीका धर्म है, यह बताकर श्रीरामका उन्हें रोकना और वन जानेके लिये उनकी अनुमति प्राप्त करना २५ कौसल्याका श्रीरामकी वनयात्राके लिये मङ्गलकामनापूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीरामका उन्हें प्रणाम करके सीताके भवनकी ओर जाना २६ श्रीरामको उदास देखकर सीताका उनसे इसका कारण पूछना और श्रीरामका पिताकी आज्ञासे वनमें जानेका निश्चय बताते हुए सीताको घरमें रहनेके लिये समझाना २७ सीताकी श्रीरामसे अपनेको भी साथ ले चलनेके लिये प्रार्थना २८ श्रीरामका वनवासके कष्टका वर्णन करते हुए सीताको वहाँ चलनेसे मना करना २९ सीताका श्रीरामके समक्ष उनके साथ अपने वनगमनका औचित्य बताना ३० सीताका वनमें चलनेके लिये अधिक आग्रह, विलाप और घबराहट देखकर श्रीरामका उन्हें साथ ले चलनेकी स्वीकृति देना, पिता-माता और गुरुजनोंकी सेवाका महत्त्व बताना तथा सीताको वनमें चलनेकी तैयारीके लिये घरकी वस्तुओंका दान करनेकी आज्ञा देना ३१ श्रीराम और लक्ष्मणका संवाद, श्रीरामकी आज्ञासे लक्ष्मणका सुहृदोंसे पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमनके लिये तैयार होना, श्रीरामका उनसे ब्राह्मणोंको धन बाँटनेका विचार व्यक्त करना ३२ सीतासहित श्रीरामका वसिष्ठपुत्र सुयज्ञको बुलाकर उनके तथा उनकी पन्तीके लिये बहुमूल्य आभूषण, रन्त और धन आदिका दान तथा लक्ष्मणसहित श्रीरामद्वारा ब्राह्मणों, ब्रह्मचारियों, सेवकों, त्रिजट ब्राह्मण और सुहृज्जनोंको धनका वितरण ३३ सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामका दु:खी नगरवासियोंके मुखसे तरह-तरहकी बातें सुनते हुए पिताके दर्शनके लिये कैकेयीके महलमें जाना ३४ सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामका रानियों-सहित राजा दशरथके पास जाकर वनवासके लिये विदा माँगना, राजाका शोक और मूर्च्छा, श्रीरामका उन्हें समझाना तथा राजाका श्रीरामको हृदयसे लगाकर पुन: मूर्च्छित हो जाना ३५ सुमन्त्रके समझाने और फटकारनेपर भी कैकेयीका टस-से-मस न होना ३६ राजा दशरथका श्रीरामके साथ सेना और खजाना भेजनेका आदेश, कैकेयीद्वारा इसका विरोध, सिद्धार्थका कैकेयीको समझाना तथा राजाका श्रीरामके साथ जानेकी इच्छा प्रकट करना ३७ श्रीराम आदिका वल्कल-वस्त्र-धारण, सीताके वल्कल-धारणसे रनिवासकी स्त्रियोंको खेद तथा गुरु वसिष्ठका कैकेयीको फटकारते हुए सीताके वल्कल-धारणका अनौचित्य बताना ३८ राजा दशरथका सीताको वल्कल धारण कराना अनुचित बताकर कैकेयीको फटकारना और श्रीरामका उनसे कौसल्यापर कृपादृष्टि रखनेके लिये अनुरोध करना ३९ राजा दशरथका विलाप, उनकी आज्ञासे सुमन्त्रका रामके लिये रथ जोतकर लाना, कोषाध्यक्षका सीताको बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण देना, कौसल्याका सीताको पतिसेवाका उपदेश, सीताके द्वारा उसकी स्वीकृति तथा श्रीरामका अपनी मातासे पिताके प्रति दोषदृष्टि न रखनेका अनुरोध करके अन्य माताओंसे भी विदा माँगना ४० सीता, राम और लक्ष्मणका दशरथकी परिक्रमा करके कौसल्या आदिको प्रणाम करना, सुमित्राका लक्ष्मणको उपदेश, सीता-सहित श्रीराम और लक्ष्मणका रथमें बैठकर वनकी ओर प्रस्थान, पुरवासियों तथा रानियोंसहित महाराज दशरथकी शोकाकुल अवस्था ४१ श्रीरामके वनगमनसे रनवासकी स्त्रियोंका विलाप तथा नगरनिवासियोंकी शोकाकुल अवस्था ४२ राजा दशरथका पृथ्वीपर गिरना, श्रीरामके लिये विलाप करना, कैकेयीको अपने पास आनेसे मना करना और उसे त्याग देना, कौसल्या और सेवकोंकी सहायतासे उनका कौसल्याके भवनमें आना और वहाँ भी श्रीरामके लिये दु:खका ही अनुभव करना ४३ महारानी कौसल्याका विलाप ४४ सुमित्राका कौसल्याको आश्वासन देना ४५ श्रीरामका पुरवासियोंसे भरत और महाराज दशरथके प्रति प्रेमभाव रखनेका अनुरोध करते हुए लौट जानेके लिये कहना, नगरके वृद्ध ब्राह्मणोंका श्रीरामसे लौट चलनेके लिये आग्रह करना तथा उन सबके साथ श्रीरामका तमसातटपर पहुँचना ४६ सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामका रात्रिमें तमसातटपर निवास, माता-पिता और अयोध्याके लिये चिन्ता तथा पुरवासियोंको सोते छोड़कर वनकी ओर जाना ४७ प्रात:काल उठनेपर पुरवासियोंका विलाप करना और निराश होकर नगरको लौटना ४८ नगरनिवासिनी स्त्रियोंका विलाप करना ४९ ग्रामवासियोंकी बातें सुनते हुए श्रीरामका कोसल जनपदको लाँघते हुए आगे जाना और वेदश्रुति, गोमती एवं स्यन्दिका नदियोंको पार करके सुमन्त्रसे कुछ कहना ५० श्रीरामका मार्गमें अयोध्यापुरीसे वनवासकी आज्ञा माँगना और श्रृङ्गवेरपुरमें गङ्गातटपर पहुँचकर रात्रिमें निवास करना, वहाँ निषादराज गुहद्वारा उनका सत्कार ५१ निषादराज गुहके समक्ष लक्ष्मणका विलाप ५२ श्रीरामकी आज्ञासे गुहका नाव मँगाना,श्रीरामका सुमन्त्रको समझा-बुझाकर अयोध्यापुरीको लौट जानेके लिये आज्ञा देना और माता-पता आदिसे कहनेके लिये संदेश सुनाना, सुमन्त्रके वनमें ही चलनेके लिये आग्रह करनेपर श्रीरामका उन्हें युक्तिपूर्वक समझाकर लौटनेके लिये विवश करना, फिर तीनोंका नावपर बैठना, सीताकी गङ्गाजीसे प्रार्थना, नावसे पार उतरकर श्रीराम आदिका वत्सदेशमें पहुँचना और सायंकालमें एक वृक्षके नीचे रहनेके लिये जाना ५३ श्रीरामका राजाको उपालम्भ देते हुए कैकेयीसे कौसल्या आदिके अनिष्टकी आशङ्का बताकर लक्ष्मणको अयोध्या लौटानेके लिये प्रयत्न करना, लक्ष्मणका श्रीरामके बिना अपना जीवन असम्भव बताकर वहाँ जानेसे इनकार करना, फिर श्रीरामका उन्हें वनवासकी अनुमति देना ५४ लक्ष्मण और सीतासहित श्रीरामका प्रयागमें गङ्गा-यमुना-संगमके समीप भरद्वाज-आश्रममें जाना, मुनिके द्वारा उनका अतिथि-सत्कार, उन्हें चित्रकूट पर्वतपर ठहरनेका आदेश तथा चित्रकूटकी महत्ता एवं शोभाका वर्णन ५५ भरद्वाजजीका श्रीराम आदिके लिये स्वस्तिवाचन करके उन्हें चित्रकूटका मार्ग बताना, उन सबका अपने ही बनाये हुए बेड़ेसे यमुनाजीको पार करना, सीताकी यमुना और श्यामवटसे प्रार्थना; तीनोंका यमुनाके किनारेके मार्गसे एक कोसतक जाकर वनमें घूमना-फिरना, यमुनाजीके समतल तटपर रात्रिमें निवास करना ५६ वनकी शोभा देखते-दिखाते हुए श्रीराम आदिका चित्रकूटमें पहुँचना, वाल्मीकिजीका दर्शन करके श्रीरामकी आज्ञासे लक्ष्मणद्वारा पर्णशालाका निर्माण तथा उसकी वास्तुशान्ति करके उन सबका कुटीमें प्रवेश ५७ सुमन्त्रका अयोध्याको लौटना, उनके मुखसे श्रीरामका संदेश सुनकर पुरवासियोंका विलाप, राजा दशरथ और कौसल्याकी मूर्च्छा तथा अन्त:पुरकी रानियोंका आर्तनाद ५८ महाराज दशरथकी आज्ञासे सुमन्त्रका श्रीराम और लक्ष्मणके संदेश सुनाना ५९ सुमन्त्रद्वारा श्रीरामके शोकसे जड-चेतन एवं अयोध्यापुरीकी दुरवस्थाका वर्णन तथा राजा दशरथका विलाप ६० कौसल्याका विलाप और सारथि सुमन्त्रका उन्हें समझाना ६१ कौसल्याका विलापपूर्वक राजा दशरथको उपालम्भ देना ६२ दु:खी हुए राजा दशरथका कौसल्याको हाथ जोड़कर मनाना और कौसल्याका उनके चरणोंमें पड़कर क्षमा माँगना ६३ राजा दशरथका शोक और उनका कौसल्यासे अपने द्वारा मुनिकुमारके मारे जानेका प्रसङ्ग सुनाना ६४ राजा दशरथका अपने द्वारा मुनिकुमारके वधसे दु:खी हुए उनके माता-पिताके विलाप और उनके दिये हुए शापका प्रसंग सुनाकर कौसल्याके समीप रोते-बिलखते हुए आधी रातके समय अपने प्राणोंको त्याग देना ६५ वन्दीजनोंका स्तुतिपाठ, राजा दशरथको दिवंगत हुआ जान उनकी रानियोंका करुण विलाप ६६ राजाके लिये कौसल्याका विलाप और कैकेयीकी भर्त्सना, मन्त्रियोंका राजाके शवको तेलसे भरे हुए कड़ाहमें सुलाना, रानियोंका विलाप, पुरीकी श्रीहीनता और पुरवासियोंका शोक ६७ मार्कण्डेय आदि मुनियों तथा मन्त्रियोंका राजाके बिना होनेवाली देशकी दुरवस्थाका वर्णन करके वसिष्ठजीसे किसीको राजा बनानेके लिये अनुरोध ६८ वसिष्ठजीकी आज्ञासे पाँच दूतोंका अयोध्यासे केकयदेशके राजगृह नगरमें जाना ६९ भरतकी चिन्ता, मित्रोंद्वारा उन्हें प्रसन्न करनेका प्रयास तथा उनके पूछनेपर भरतका मित्रोंके समक्ष अपने देखे हुए भयंकर दु:स्वप्नका वर्णन करना ७० दूतोंका भरतको उनके नाना और मामाके लिये उपहारकी वस्तुएँ अर्पित करना और वसिष्ठजीका संदेश सुनाना, भरतका पिता आदिकी कुशल पूछना और नानासे आज्ञा तथा उपहारकी वस्तुएँ पाकर शत्रुघ्नके साथ अयोध्याकी ओर प्रस्थान करना ७१ रथ और सेनासहित भरतकी यात्रा, विभिन्न स्थानोंको पार करके उनका उज्जिहाना नगरीके उद्यानमें पहुँचना और सेनाको धीरे-धीरे आनेकी आज्ञा दे स्वयं रथद्वारा तीव्र वेगसे आगे बढ़ते हुए सालवनको पार करके अयोध्याके निकट जाना, वहाँसे अयोध्याकी दुरवस्था देखते हुए आगे बढ़ना और सारथिसे अपना दु:खपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवनमें प्रवेश करना ७२ भरतका कैकेयीके भवनमें जाकर उसे प्रणाम करना, उसके द्वारा पिताके परलोकवासका समाचार पा दु:खी हो विलाप करना तथा श्रीरामके विषयमें पूछनेपर कैकेयीद्वारा उनका श्रीरामके वनगमनके वृत्तान्तसे अवगत होना ७३ भरतका कैकेयीको धिक्कारना और उसके प्रति महान् रोष प्रकट करना ७४ भरतका कैकेयीको कड़ी फटकार देना ७५ कौसल्याके सामने भरतका शपथ खाना ७६ राजा दशरथका अन्त्येष्टिसंस्कार ७७ भरतका पिताके श्राद्धमें ब्राह्मणोंको बहुत धन-रन्त आदिका दान देना, तेरहवें दिन अस्थि-संचयका शेष कार्य पूर्ण करनेके लिये पिताकी चिताभूमिपर जाकर भरत और शत्रुघ्नका विलाप करना और वसिष्ठ तथा सुमन्त्रका उन्हें समझाना ७८ शत्रुघ्नका रोष, उनका कुब्जाको घसीटना और भरतजीके कहनेसे उसे मूर्च्छित अवस्थामें छोड़ देना ७९ मन्त्री आदिका भरतसे राज्य ग्रहण करनेके लिये प्रस्ताव तथा भरतका अभिषेक-सामग्रीकी परिक्रमा करके श्रीरामको ही राज्यका अधिकारी बताकर उन्हें लौटा लानेके लिये चलनेके निमित्त व्यवस्था करनेकी सबको आज्ञा देना ८० अयोध्यासे गङ्गातटतक सुरम्य शिविर और कूप आदिसे युक्त सुखद राजमार्गका निर्माण ८१ प्रात:कालके मङ्गलवाद्य-घोषको सुनकर भरतका दु:खी होना और उसे बंद कराकर विलाप करना, वसिष्ठजीका सभामें आकर मन्त्री आदिको बुलानेके लिये दूत भेजना ८२ वसिष्ठजीका भरतको राज्यपर अभिषिक्त होनेके लिये आदेश देना तथा भरतका उसे अनुचित बताकर अस्वीकार करना और श्रीरामको लौटा लानेके लिये वनमें चलनेकी तैयारीके निमित्त सबको आदेश देना ८३ भरतकी वनयात्रा और श्रृङ्गवेरपुरमें रात्रिवास ८४ निषादराज गुहका अपने बन्धुओंको नदीकी रक्षा करते हुए युद्धके लिये तैयार रहनेका आदेश दे भेंटकी सामग्री ले भरतके पास जाना और उनसे आतिथ्य स्वीकार करनेके लिये अनुरोध करना ८५ गुह और भरतकी बातचीत तथा भरतका शोक ८६ निषादराज गुहके द्वारा लक्ष्मणके सद्भाव और विलापका वर्णन ८७ भरतकी मूर्च्छासे गुह, शत्रुघ्न और माताओंका दु:खी होना, होशमें आनेपर भरतका गुहसे श्रीराम आदिके भोजन और शयन आदिके विषयमें पूछना और गुहका उन्हें सब बातें बताना ८८ श्रीरामकी कुश-शय्या देखकर भरतका शोकपूर्ण उद्गार तथा स्वयं भी वल्कल और जटाधारण करके वनमें रहनेका विचार प्रकट करना ८९ भरतका सेनासहित गङ्गापार करके भरद्वाजके आश्रमपर जाना ९० भरत और भरद्वाज मुनिकी भेंट एवं बातचीत तथा मुनिका अपने आश्रमपर ही ठहरनेका आदेश देना ९१ भरद्वाज मुनिके द्वारा सेनासहित भरतका दिव्य सत्कार ९२ भरतका भरद्वाज मुनिसे जानेकी आज्ञा लेते हुए श्रीरामके आश्रमपर जानेका मार्ग जानना और मुनिको अपनी माताओंका परिचय देकर वहाँसे चित्रकूटके लिये सेनासहित प्रस्थान करना ९३ सेनासहित भरतकी चित्रकूट-यात्राका वर्णन ९४ श्रीरामका सीताको चित्रकूटकी शोभा दिखाना ९५ श्रीरामका सीताके प्रति मन्दाकिनी नदीकी शोभाका वर्णन ९६ वन-जन्तुओंके भागनेका कारण जाननेके लिये श्रीरामकी आज्ञासे लक्ष्मणका शाल-वृक्षपर चढ़कर भरतकी सेनाको देखना और उनके प्रति अपना रोषपूर्ण उद्गार प्रकट करना ९७ श्रीरामका लक्ष्मणके रोषको शान्त करके भरतके सद्भावका वर्णन करना, लक्ष्मणका लज्जित हो श्रीरामके पास खड़ा होना और भरतकी सेनाका पर्वतके नीचे छावनी डालना ९८ भरतके द्वारा श्रीरामके आश्रमकी खोजका प्रबन्ध तथा उन्हें आश्रमका दर्शन ९९ भरतका शत्रुघ्न आदिके साथ श्रीरामके आश्रमपर जाना, उनकी पर्णशालाको देखना तथा रोते-रोते उनके चरणोंमें गिर जाना, श्रीरामका उन सबको हृदयसे लगाना और मिलना १०० श्रीरामका भरतको कुशल-प्रश्नके बहाने राजनीतिका उपदेश करना १०१ श्रीरामका भरतसे वनमें आगमनका प्रयोजन पूछना, भरतका उनसे राज्य ग्रहण करनेके लिये कहना और श्रीरामका उसे अस्वीकार कर देना १०२ भरतका पुन: श्रीरामसे राज्य ग्रहण करनेका अनुरोध करके उनसे पिताकी मृत्युका समाचार बताना १०३ श्रीराम आदिका विलाप, पिताके लिये जलाञ्जलि-दान, पिण्डदान और रोदन १०४ वसिष्ठजीके साथ आती हुर्इ कौसल्याका मन्दाकिनीके तटपर सुमित्रा आदिके समक्ष दु:खपूर्ण उद्गार, श्रीराम, लक्ष्मण और सीताके द्वारा माताओंकी चरण-वन्दना तथा वसिष्ठजीको प्रणाम करके श्रीराम आदिका सबके साथ बैठना १०५ भरतका श्रीरामको अयोध्यामें चलकर राज्य ग्रहण करनेके लिये कहना, श्रीरामका जीवनकी अनित्यता बताते हुए पिताकी मृत्युके लिये शोक न करनेका भरतको उपदेश देना और पिताकी आज्ञाका पालन करनेके लिये ही राज्य ग्रहण न करके वनमें रहनेका ही दृढ़ निश्चय बताना १०६ भरतकी पुन: श्रीरामसे अयोध्या लौटने और राज्य ग्रहण करनेकी प्रार्थना १०७ श्रीरामका भरतको समझाकर उन्हें अयोध्या जानेका आदेश देना १०८ जाबालिका नास्तिकोंके मतका अवलम्बन करके श्रीरामको समझाना १०९ श्रीरामके द्वारा जाबालिके नास्तिक मतका खण्डन करके आस्तिक मतका स्थापन ११० वसिष्ठजीका सृष्टि-परम्पराके साथ इक्ष्वाकुकुल-की परम्परा बताकर ज्येष्ठके ही राज्याभिषेकका औचित्य सिद्ध करना और श्रीरामसे राज्य ग्रहण करनेके लिये कहना १११ वसिष्ठजीके समझानेपर भी श्रीरामको पिताकी आज्ञाके पालनसे विरत होते न देख भरतका धरना देनेको तैयार होना तथा श्रीरामका उन्हें समझाकर अयोध्या लौटनेकी आज्ञा देना ११२ ऋषियोंका भरतको श्रीरामकी आज्ञाके अनुसार लौट जानेकी सलाह देना, भरतका पुन: श्रीरामके चरणोंमें गिरकर चलनेकी प्रार्थना करना, श्रीरामका उन्हें समझाकर अपनी चरणपादुका देकर उन सबको विदा करना ११३ भरतका भरद्वाजसे मिलते हुए अयोध्याको लौट आना ११४ भरतके द्वारा अयोध्याकी दुरवस्थाका दर्शन तथा अन्त:पुरमें प्रवेश करके भरतका दु:खी होना ११५ भरतका नन्दिग्राममें जाकर श्रीरामकी चरण-पादुकाओंको राज्यपर अभिषिक्त करके उन्हें निवेदनपूर्वक राज्यका सब कार्य करना ११६ वृद्ध कुलपतिसहित बहुत-से ऋषियोंका चित्रकूट छोड़कर दूसरे आश्रममें जाना ११७ श्रीराम आदिका अत्रिमुनिके आश्रमपर जाकर उनके द्वारा सत्कृत होना तथा अनसूयाद्वारा सीताका सत्कार ११८ सीता-अनसूया-संवाद, अनसूयाका सीताको प्रेमोपहार देना तथा अनसूयाके पूछनेपर सीताका उन्हें अपने स्वयंवरकी कथा सुनाना ११९ अनसूयाकी आज्ञासे सीताका उनके दिये हुए वस्त्राभूषणोंको धारण करके श्रीरामजीके पास आना तथा श्रीराम आदिका रात्रिमें आश्रमपर रहकर प्रात:काल अन्यत्र जानेके लिये ऋषियोंसे विदा लेना ३. अरण्यकाण्ड १ श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका तापसोंके आश्रममण्डलमें सत्कार २ वनके भीतर श्रीराम, लक्ष्मण और सीतापर विराधका आक्रमण ३ विराध और श्रीरामकी बातचीत, श्रीराम और लक्ष्मणके द्वारा विराधपर प्रहार तथा विराधका इन दोनों भाइयोंको साथ लेकर दूसरे वनमें जाना ४ श्रीराम और लक्ष्मणके द्वारा विराधका वध ५ श्रीराम, लक्ष्मण और सीताका शरभङ्ग मुनिके आश्रमपर जाना, देवताओंका दर्शन करना और मुनिसे सम्मानित होना तथा शरभङ्ग मुनिका ब्रह्मलोक-गमन ६ वानप्रस्थ मुनियोंका राक्षसोंके अत्याचारसे अपनी रक्षाके लिये श्रीरामचन्द्रजीसे प्रार्थना करना और श्रीरामका उन्हें आश्वासन देना ७ सीता और भ्रातासहित श्रीरामका सुतीक्ष्णके आश्रमपर जाकर उनसे बातचीत करना तथा उनसे सत्कृत हो रातमें वहीं ठहरना ८ प्रात:काल सुतीक्ष्णसे विदा ले श्रीराम, लक्ष्मण, सीताका वहाँसे प्रस्थान ९ सीताका श्रीरामसे निरपराध प्राणियोंको न मारने और अहिंसा-धर्मका पालन करनेके लिये अनुरोध १० श्रीरामका ऋषियोंकी रक्षाके लिये राक्षसोंके वधके निमित्त की हुर्इ प्रतिज्ञाके पालनपर दृढ़ रहनेका विचार प्रकट करना ११ पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनिकी कथा, विभिन्न आश्रमोंमें घूमकर श्रीराम आदिका सुतीक्ष्णके आश्रममें आना, वहाँ कुछ कालतक रहकर उनकी आज्ञासे अगस्त्यके भार्इ तथा अगस्त्यके आश्रमपर जाना तथा अगस्त्यके प्रभावका वर्णन १२ श्रीराम आदिका अगस्त्यके आश्रममें प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनिकी ओरसे उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रोंकी प्राप्ति १३ महर्षि अगस्त्यका श्रीरामके प्रति अपनी प्रसन्नता प्रकट करके सीताकी प्रशंसा करना, श्रीरामके पूछनेपर उन्हें पञ्चवटीमें आश्रम बनाकर रहनेका आदेश देना तथा श्रीराम आदिका प्रस्थान १४ पञ्चवटीके मार्गमें जटायुका मिलना और श्रीरामको अपना विस्तृत परिचय देना. १५ पञ्चवटीके रमणीय प्रदेशमें श्रीरामकी आज्ञासे लक्ष्मणद्वारा सुन्दर पर्णशालाका निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मणसहित श्रीरामका निवास १६ लक्ष्मणके द्वारा हेमन्त ऋतुका वर्णन और भरतकी प्रशंसा तथा श्रीरामका उन दोनोंके साथ गोदावरी नदीमें स्नान १७ श्रीरामके आश्रममें शूर्पणखाका आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपनेको भार्याके रूपमें ग्रहण करनेके लिये अनुरोध करना १८ श्रीरामके टाल देनेपर शूर्पणखाका लक्ष्मणसे प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालनेपर उसका सीतापर आक्रमण और लक्ष्मणका उसके नाक-कान काट लेना १९ शूर्पणखाके मुखसे उसकी दुर्दशाका वृत्तान्त सुनकर क्रोधमें भरे हुए खरका श्रीराम आदिके वधके लिये चौदह राक्षसोंको भेजना २० श्रीरामद्वारा खरके भेजे हुए चौदह राक्षसोंका वध २१ शूर्पणखाका खरके पास आकर उन राक्षसोंके वधका समाचार बताना और रामका भय दिखाकर उसे युद्धके लिये उत्तेजित करना २२ चौदह हजार राक्षसोंकी सेनाके साथ खर-दूषणका जनस्थानसे पञ्चवटीकी ओर प्रस्थान ४०९ २३ भयंकर उत्पातोंको देखकर भी खरका उनकी परवा नहीं करना तथा राक्षस-सेनाका श्रीरामके आश्रमके समीप पहुँचना २४ श्रीरामका तात्कालिक शकुनोंद्वारा राक्षसोंके विनाश और अपनी विजयकी सम्भावना करके सीतासहित लक्ष्मणको पर्वतकी गुफामें भेजना और युद्धके लिये उद्यत होना २५ राक्षसोंका श्रीरामपर आक्रमण और श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा राक्षसोंका संहार २६ श्रीरामके द्वारा दूषणसहित चौदह सहस्र राक्षसोंका वध २७ त्रिशिराका वध २८ खरके साथ श्रीरामका घोर युद्ध २९ श्रीरामका खरको फटकारना तथा खरका भी उन्हें कठोर उत्तर देकर उनके ऊपर गदाका प्रहार करना और श्रीरामद्वारा उस गदाका खण्डन ३० श्रीरामके व्यङ्ग करनेपर खरका उन्हें फटकारकर उनके ऊपर सालवृक्षका प्रहार करना, श्रीरामका उस वृक्षको काटकर एक तेजस्वी बाणसे खरको मार गिराना तथा देवताओं और महर्षियोंद्वारा श्रीरामकी प्रशंसा ३१ रावणका अकम्पनकी सलाहसे सीताका अपहरण करनेके लिये जाना और मारीचके कहनेसे लङ्काको लौट आना ३२ शूर्पणखाका लङ्कामें रावणके पास जाना ३३ शूर्पणखाका रावणको फटकारना ३४ रावणके पूछनेपर शूर्पणखाका उससे राम, लक्ष्मण और सीताका परिचय देते हुए सीताको भार्या बनानेके लिये उसे प्रेरित करना ३५ रावणका समुद्रतटवर्ती प्रान्तकी शोभा देखते हुए पुन: मारीचके पास जाना ३६ रावणका मारीचसे श्रीरामके अपराध बताकर उनकी पत्नी सीताके अपहरणमें सहायताके लिये कहना ३७ मारीचका रावणको श्रीरामचन्द्रजीके गुण और प्रभाव बताकर सीताहरणके उद्योगसे रोकना ३८ श्रीरामकी शक्तिके विषयमें अपना अनुभव बताकर मारीचका रावणको उनका अपराध करनेसे मना करना ३९ मारीचका रावणको समझाना ४० रावणका मारीचको फटकारना और सीताहरणके कार्यमें सहायता करनेकी आज्ञा देना ४१ मारीचका रावणको विनाशका भय दिखाकर पुन: समझाना ४२ मारीचका सुवर्णमय मृगरूप धारण करके श्रीरामके आश्रमपर जाना और सीताका उसे देखना ४३ कपटमृगको देखकर लक्ष्मणका संदेह, सीताका उस मृगको जीवित या मृत अवस्थामें भी ले आनेके लिये श्रीरामको प्रेरित करना तथा श्रीरामका लक्ष्मणको समझा-बुझाकर सीताकी रक्षाका भार सौंपकर उस मृगको मारनेके लिये जाना ४४ श्रीरामके द्वारा मारीचका वध और उसके द्वारा सीता और लक्ष्मणके पुकारनेका शब्द सुनकर श्रीरामकी चिन्ता ४५ सीताके मार्मिक वचनोंसे प्रेरित होकर लक्ष्मणका श्रीरामके पास जाना ४६ रावणका साधुवेषमें सीताके पास जाकर उनका परिचय पूछना और सीताका आतिथ्यके लिये उसे आमन्त्रित करना ४७ सीताका रावणको अपना और पतिका परिचय देकर वनमें आनेका कारण बताना, रावणका उन्हें अपनी पटरानी बनानेकी इच्छा प्रकट करना और सीताका उसे फटकारना ४८ रावणके द्वारा अपने पराक्रमका वर्णन और सीताद्वारा उसको कड़ी फटकार ४९ रावणद्वारा सीताका अपहरण, सीताका विलाप और उनके द्वारा जटायुका दर्शन ५० जटायुका रावणको सीताहरणके दुष्कर्मसे निवृत्त होनेके लिये समझाना और अन्तमें युद्धके लिये ललकारना ५१ जटायु तथा रावणका घोर युद्ध और रावणके द्वारा जटायुका वध ५२ रावणद्वारा सीताका अपहरण ५३ सीताका रावणको धिक्कारना ५४ सीताका पाँच वानरोंके बीच अपने भूषण और वस्त्रको गिराना, रावणका लङ्कामें पहुँचकर सीताको अन्त:पुरमें रखना तथा जनस्थानमें आठ राक्षसोंको गुप्तचरके रूपमें रहनेके लिये भेजना ५५ रावणका सीताको अपने अन्त:पुरका दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जानेके लिये समझाना ५६ सीताका श्रीरामके प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावणको फटकारना तथा रावणकी आज्ञासे राक्षसियोंका उन्हें अशोकवाटिकामें ले जाकर डराना (प्रक्षिप्त सर्ग)—ब्रह्माजीकी आज्ञासे देवराज इन्द्रका निद्रासहित लङ्कामें जाकर सीताको दिव्य खीर अर्पित करना और उनसे विदा लेकर लौटना ५७ श्रीरामका लौटना, मार्गमें अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मणसे मिलनेपर उन्हें उलाहना दे सीतापर संकट आनेकी आशङ्का करना ५८ मार्गमें अनेक प्रकारकी आशङ्का करते हुए लक्ष्मणसहित श्रीरामका आश्रममें आना और वहाँ सीताको न पाकर व्यथित होना ५९ श्रीराम और लक्ष्मणकी बातचीत ६० श्रीरामका विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओंसे सीताका पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारम्बार उनकी खोज करना ६१ श्रीराम और लक्ष्मणके द्वारा सीताकी खोज और उनके न मिलनेसे श्रीरामकी व्याकुलता ६२ श्रीरामका विलाप ६३ श्रीरामका विलाप ६४ श्रीराम और लक्ष्मणके द्वारा सीताकी खोज, श्रीरामका शोकोद्गार, मृगोंद्वारा संकेत पाकर दोनों भाइयोंका दक्षिण दिशाकी ओर जाना, पर्वतपर क्रोध, सीताके बिखरे हुए फूल, आभूषणोंके कण और युद्धके चिह्न देखकर श्रीरामका देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकीपर रोष प्रकट करना ६५ लक्ष्मणका श्रीरामको समझा-बुझाकर शान्त करना ६६ लक्ष्मणका श्रीरामको समझाना ६७ श्रीराम और लक्ष्मणकी पक्षिराज जटायुसे भेंट तथा श्रीरामका उन्हें गलेसे लगाकर रोना ६८ जटायुका प्राण-त्याग और श्रीरामद्वारा उनका दाह-संस्कार ६९ लक्ष्मणका अयोमुखीको दण्ड देना तथा श्रीराम और लक्ष्मणका कबन्धके बाहुबन्धमें पड़कर चिन्तित होना ७० श्रीराम और लक्ष्मणका परस्पर विचार करके कबन्धकी दोनों भुजाओंको काट डालना तथा कबन्धके द्वारा उनका स्वागत ७१ कबन्धकी आत्मकथा, अपने शरीरका दाह हो जानेपर उसका श्रीरामको सीताके अन्वेषणमें सहायता देनेका आश्वासन ७२ श्रीराम और लक्ष्मणके द्वारा चिताकी आगमें कबन्धका दाह तथा उसका दिव्य रूपमें प्रकट होकर उन्हें सुग्रीवसे मित्रता करनेके लिये कहना ७३ दिव्य रूपधारी कबन्धका श्रीराम और लक्ष्मणको ऋष्यमूक और पम्पासरोवरका मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनिके वन एवं आश्रमका परिचय देकर प्रस्थान करना ७४ श्रीराम और लक्ष्मणका पम्पासरोवरके तटपर मतङ्गवनमें शबरीके आश्रमपर जाना, उसका सत्कार ग्रहण करना और उसके साथ मतङ्गवनको देखना, शबरीका अपने शरीरकी आहुति दे दिव्यधामको प्रस्थान करना. ७५ श्रीराम और लक्ष्मणकी बातचीत तथा उन दोनों भाइयोंका पम्पासरोवरके तटपर जाना ४. किष्किन्धाकाण्ड १ पम्पासरोवरके दर्शनसे श्रीरामकी व्याकुलता, श्रीरामका लक्ष्मणसे पम्पाकी शोभा तथा वहाँकी उद्दीपनसामग्रीका वर्णन करना, लक्ष्मणका श्रीरामको समझाना तथा दोनों भाइयोंको ऋष्यमूककी ओर आते देख सुग्रीव तथा अन्य वानरोंका भयभीत होना २ सुग्रीव तथा वानरोंकी आशङ्का, हनुमान्जीद्वारा उसका निवारण तथा सुग्रीवका हनुमान्जीको श्रीराम-लक्ष्मणके पास उनका भेद लेनेके लिये भेजना ३ हनुमान्जीका श्रीराम और लक्ष्मणसे वनमें आनेका कारण पूछना और अपना तथा सुग्रीवका परिचय देना, श्रीरामका उनके वचनोंकी प्रशंसा करके लक्ष्मणको अपनी ओरसे बात करनेकी आज्ञा देना तथा लक्ष्मणद्वारा अपनी प्रार्थना स्वीकृत होनेसे हनुमान्जीका प्रसन्न होना ४ लक्ष्मणका हनुमान्जीसे श्रीरामके वनमें आने और सीताजीके हरे जानेका वृत्तान्त बताना तथा इस कार्यमें सुग्रीवके सहयोगकी इच्छा प्रकट करना, हनुमान्जीका उन्हें आश्वासन देकर उन दोनों भाइयोंको अपने साथ ले जाना ५ श्रीराम और सुग्रीवकी मैत्री तथा श्रीरामद्वारा वालिवधकी प्रतिज्ञा ६ सुग्रीवका श्रीरामको सीताजीके आभूषण दिखाना तथा श्रीरामका शोक एवं रोषपूर्ण वचन ७ सुग्रीवका श्रीरामको समझाना तथा श्रीरामका सुग्रीवको उनकी कार्यसिद्धिका विश्वास दिलाना ८ सुग्रीवका श्रीरामसे अपना दु:ख निवेदन करना और श्रीरामका उन्हें आश्वासन देते हुए दोनों भाइयोंमें वैर होनेका कारण पूछना ९ सुग्रीवका श्रीरामचन्द्रजीको वालीके साथ अपने वैर होनेका कारण बताना १० भार्इके साथ वैरका कारण बतानेके प्रसङ्गमें सुग्रीवका वालीको मनाने और वालीद्वारा अपने निष्कासित होनेका वृत्तान्त सुनाना ११ सुग्रीवके द्वारा वालीके पराक्रमका वर्णन— वालीका दुन्दुभि दैत्यको मारकर उसकी लाशको मतङ्गवनमें फेंरुकना, मतङ्गमुनिका वालीको शाप देना, श्रीरामका दुन्दुभिके अस्थिसमूहको दूर फेंरुकना और सुग्रीवका उनसे साल-भेदनके लिये आग्रह करना १२ श्रीरामके द्वारा सात साल-वृक्षोंका भेदन, श्रीरामकी आज्ञासे सुग्रीवका किष्किन्धामें आकर वालीको ललकारना और युद्धमें उससे पराजित होकर मतङ्गवनमें भाग जाना, वहाँ श्रीरामका उन्हें आश्वासन देना और गलेमें पहचानके लिये गजपुष्पीलता डालकर उन्हें पुन: युद्धके लिये भेजना १३ श्रीराम आदिका मार्गमें वृक्षों, विविध जन्तुओं, जलाशयों तथा सप्तजन आश्रमका दूरसे दर्शन करते हुए पुन: किष्किन्धापुरीमें पहुँचना १४ वाली-वधके लिये श्रीरामका आश्वासन पाकर सुग्रीवकी विकट गर्जना १५ सुग्रीवकी गर्जना सुनकर वालीका युद्धके लिये निकलना और ताराका उसे रोककर सुग्रीव और श्रीरामके साथ मैत्री कर लेनेके लिये समझाना १६ वालीका ताराको डाँटकर लौटाना और सुग्रीवसे जूझना तथा श्रीरामके बाणसे घायल होकर पृथ्वीपर गिरना १७ वालीका श्रीरामचन्द्रजीको फटकारना १८ श्रीरामका वालीकी बातका उत्तर देते हुए उसे दिये गये दण्डका औचित्य बताना, वालीका निरुत्तर होकर भगवान्से अपने अपराधके लिये क्षमा माँगते हुए अङ्गदकी रक्षाके लिये प्रार्थना करना और श्रीरामका उसे आश्वासन देना १९ अङ्गदसहित ताराका भागे हुए वानरोंसे बात करके वालीके समीप आना और उसकी दुर्दशा देखकर रोना २० ताराका विलाप २१ हनुमान्जीका ताराको समझाना और ताराका पतिके अनुगमनका ही निश्चय करना २२ वालीका सुग्रीव और अङ्गदसे अपने मनकी बात कहकर प्राणोंको त्याग देना २३ ताराका विलाप २४ सुग्रीवका शोकमग्नरु होकर श्रीरामसे प्राणत्यागके लिये आज्ञा माँगना, ताराका श्रीरामसे अपने वधके लिये प्रार्थना करना और श्रीरामका उसे समझाना २५ लक्ष्मणसहित श्रीरामका सुग्रीव, तारा और अङ्गदको समझाना तथा वालीके दाह-संस्कारके लिये आज्ञा प्रदान करना, फिर तारा आदिसहित सब वानरोंका वालीके शवको श्मशानभूमिमें ले जाकर अङ्गदके द्वारा उसका दाह-संस्कार कराना और उसे जलाञ्जलि देना २६ हनुमान्जीका सुग्रीवके अभिषेकके लिये श्रीरामचन्द्रजीसे किष्किन्धामें पधारनेकी प्रार्थना, श्रीरामका पुरीमें न जाकर केवल अनुमति देना तत्पश्चात् सुग्रीव और अङ्गदका अभिषेक २७ प्रस्रवणगिरिपर श्रीराम और लक्ष्मणकी परस्पर बातचीत २८ श्रीरामके द्वारा वर्षा-ऋतुका वर्णन. २९ हनुमान्जीके समझानेसे सुग्रीवका नीलको वानर-सैनिकोंको एकत्र करनेका आदेश देना ३० शरद्-ऋतुका वर्णन तथा श्रीरामका लक्ष्मणको सुग्रीवके पास जानेका आदेश देना ३१ सुग्रीवपर लक्ष्मणका रोष, श्रीरामका उन्हें समझाना, लक्ष्मणका किष्किन्धाके द्वारपर जाकर अङ्गदको सुग्रीवके पास भेजना, वानरोंका भय तथा प्लक्ष और प्रभावका सुग्रीवको कर्तव्यका उपदेश देना ३२ हनुमान्जीका चिन्तित हुए सुग्रीवको समझाना ३३ लक्ष्मणका किष्किन्धापुरीकी शोभा देखते हुए सुग्रीवके महलमें प्रवेश करके क्रोधपूर्वक धनुषको टंकारना, भयभीत सुग्रीवका ताराको उन्हें शान्त करनेके लिये भेजना तथा ताराका समझा-बुझाकर उन्हें अन्त:पुरमें ले आना ३४ सुग्रीवका लक्ष्मणके पास जाना और लक्ष्मणका उन्हें फटकारना ३५ ताराका लक्ष्मणको युक्तियुक्त वचनोंद्वारा शान्त करना ३६ सुग्रीवका अपनी लघुता तथा श्रीरामकी महत्ता बताते हुए लक्ष्मणसे क्षमा माँगना और लक्ष्मणका उनकी प्रशंसा करके उन्हें अपने साथ चलनेके लिये कहना. ३७ सुग्रीवका हनुमान्जीको वानरसेनाके संग्रहके लिये दोबारा दूत भेजनेकी आज्ञा देना, उन दूतोंसे राजाकी आज्ञा सुनकर समस्त वानरोंका किष्किन्धाके लिये प्रस्थान और दूतोंका लौटकर सुग्रीवको भेंट देनेके साथ ही वानरोंके आगमनका समाचार सुनाना ३८ लक्ष्मणसहित सुग्रीवका भगवान् श्रीरामके पास आकर उनके चरणोंमें प्रणाम करना, श्रीरामका उन्हें समझाना, सुग्रीवका अपने किये हुए सैन्यसंग्रहविषयक उद्योगको बताना और उसे सुनकर श्रीरामका प्रसन्न होना ३९ श्रीरामचन्द्रजीका सुग्रीवके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तथा विभिन्न वानर-यूथपतियोंका अपनी सेनाओंके साथ आगमन ४० श्रीरामकी आज्ञासे सुग्रीवका सीताकी खोजके लिये पूर्व दिशामें वानरोंको भेजना और वहाँके स्थानोंका वर्णन करना ४१ सुग्रीवका दक्षिण दिशाके स्थानोंका परिचय देते हुए वहाँ प्रमुख वानर वीरोंको भेजना. ४२ सुग्रीवका पश्चिम दिशाके स्थानोंका परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरोंको वहाँ भेजना ४३ सुग्रीवका उत्तर दिशाके स्थानोंका परिचय देते हुए शतबलि आदि वानरोंको वहाँ भेजना ४४ श्रीरामका हनुमान्जीको अँगूठी देकर भेजना ४५ विभिन्न दिशाओंमें जाते हुए वानरोंका सुग्रीवके समक्ष अपने उत्साहसूचक वचन सुनाना ४६ सुग्रीवका श्रीरामचन्द्रजीको अपने भूमण्डल-भ्रमणका वृत्तान्त बताना ४७ पूर्व आदि तीन दिशाओंमें गये हुए वानरोंका निराश होकर लौट आना ४८ दक्षिण दिशामें गये हुए वानरोंका सीताकी खोज आरम्भ करना ४९ अङ्गद और गन्धमादनके आश्वासन देनेपर वानरोंका पुन: उत्साहपूर्वक अन्वेषण-कार्यमें प्रवृत्त होना ५० भूखे-प्यासे वानरोंका एक गुफामें घुसकर वहाँ दिव्य वृक्ष, दिव्य सरोवर, दिव्य भवन तथा एक वृद्धा तपस्विनीको देखना और हनुमान्जीका उससे उसका परिचय पूछना ५१ हनुमान्जीके पूछनेपर वृद्धा तापसीका अपना तथा उस दिव्य स्थानका परिचय देकर सब वानरोंको भोजनके लिये कहना ५२ तापसी स्वयंप्रभाके पूछनेपर वानरोंका उसे अपना वृत्तान्त बताना और उसके प्रभावसे गुफाके बाहर निकलकर समुद्रतटपर पहुँचना ५३ लौटनेकी अवधि बीत जानेपर भी कार्य सिद्ध न होनेके कारण सुग्रीवके कठोर दण्डसे डरनेवाले अङ्गद आदि वानरोंका उपवास करके प्राण त्याग देनेका निश्चय ५४ हनुमान्जीका भेदनीतिके द्वारा वानरोंको अपने पक्षमें करके अङ्गदको अपने साथ चलनेके लिये समझाना ५५ अङ्गदसहित वानरोंका प्रायोपवेशन ५६ सम्पातिसे वानरोंको भय, उनके मुखसे जटायुके वधकी बात सुनकर सम्पातिका दु:खी होना और अपनेको नीचे उतारनेके लिये वानरोंसे अनुरोध करना ५७ अङ्गदका सम्पातिको पर्वत-शिखरसे नीचे उतारकर उन्हें जटायुके मारे जानेका वृत्तान्त बताना तथा राम-सुग्रीवकी मित्रता एवं वालिवधका प्रसङ्ग सुनाकर अपने आमरण उपवासका कारण निवेदन करना ५८ सम्पातिका अपने पंख जलनेकी कथा सुनाना, सीता और रावणका पता बताना तथा वानरोंकी सहायतासे समुद्रतटपर जाकर भार्इको जलाञ्जलि देना ५९ सम्पातिका अपने पुत्र सुपार्श्वके मुखसे सुनी हुर्इ सीता और रावणको देखनेकी घटनाका वृत्तान्त बताना ६० सम्पातिकी आत्मकथा ६१ सम्पातिका निशाकर मुनिको अपने पंखके जलनेका कारण बताना ६२ निशाकर मुनिका सम्पातिको सान्त्वना देते हुए उन्हें भावी श्रीरामचन्द्रजीके कार्यमें सहायता देनेके लिये जीवित रहनेका आदेश देना ६३ सम्पातिका पंखयुक्त होकर वानरोंको उत्साहित करके उड़ जाना और वानरोंका वहाँसे दक्षिण दिशाकी ओर प्रस्थान करना ६४ समुद्रकी विशालता देखकर विषादमें पड़े हुए वानरोंको आश्वासन दे अङ्गदका उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घनके लिये उनकी शक्ति पूछना ६५ बारी-बारीसे वानर-वीरोंके द्वारा अपनी-अपनी गमनशक्तिका वर्णन, जाम्बवान् और अंगदकी बातचीत तथा जाम्बवान्का हनुमान्जीको प्रेरित करनेके लिये उनके पास जाना ६६ जाम्बवान्का हनुमान्जीको उनकी उत्पत्तिकथा सुनाकर समुद्रलङ्घनके लिये उत्साहित करना ६७ हनुमान्जीका समुद्र लाँघनेके लिये उत्साह प्रकट करना, जाम्बवान्के द्वारा उनकी प्रशंसा तथा वेगपूर्वक छलाँग मारनेके लिये हनुमान्जीका महेन्द्र पर्वतपर चढ़ना ५. सुन्दरकाण्ड १- हनुमान्जीके द्वारा समुद्रका लङ्घन, मैनाकके द्वारा उनका स्वागत, सुरसापर उनकी विजय तथा सिंहिकाका वध करके उनका समुद्रके उस पार पहुँचकर लङ्काकी शोभा देखना २- लङ्कापुरीका वर्णन, उसमें प्रवेश करनेके विषयमें हनुमान्जीका विचार, उनका लघुरूपसे पुरीमें प्रवेश तथा चन्द्रोदयका वर्णन ३- लङ्कापुरीका अवलोकन करके हनुमान्जीका विस्मित होना, उसमें प्रवेश करते समय निशाचरी लङ्काका उन्हें रोकना और उनकी मारसे विह्वल होकर उन्हें पुरीमें प्रवेश करनेकी अनुमति देना ४- हनुमान्जीका लङ्कापुरी एवं रावणके अन्त:पुरमें प्रवेश ५- हनुमान्जीका रावणके अन्त:पुरमें घर-घरमें सीताको ढूँढ़ना और उन्हें न देखकर दु:खी होना ६- हनुमान्जीका रावण तथा अन्यान्य राक्षसोंके घरोंमें सीताजीकी खोज करना ७- रावणके भवन एवं पुष्पक विमानका वर्णन ८- हनुमान्जीके द्वारा पुन: पुष्पक विमानका दर्शन ९- हनुमान्जीका रावणके श्रेष्ठ भवन, पुष्पक विमान तथा रावणके रहनेकी सुन्दर हवेलीको देखकर उसके भीतर सोयी हुर्इ सहस्रों सुन्दरी स्त्रियोंका अवलोकन करना १०- हनुमान्जीका अन्त:पुरमें सोये हुए रावण तथा गाढ़ निद्रामें पड़ी हुर्इ उसकी स्त्रियोंको देखना तथा मन्दोदरीको सीता समझकर प्रसन्न होना ११- वह सीता नहीं है—ऐसा निश्चय होनेपर हनुमान्जीका पुन: अन्त:पुरमें और उसकी पानभूमिमें सीताका पता लगाना, उनके मनमें धर्मलोपकी आशङ्का और स्वत: उसका निवारण होना १२- सीताके मरणकी आशङ्कासे हनुमान्जीका शिथिल होना; फिर उत्साहका आश्रय लेकर अन्य स्थानोंमें उनकी खोज करना और कहीं भी पता न लगनेसे पुन: उनका चिन्तित होना १३- सीताजीके नाशकी आशङ्कासे हनुमान्जीकी चिन्ता, श्रीरामको सीताके न मिलनेकी सूचना देनेसे अनर्थकी सम्भावना देख हनुमान्जीका न लौटनेका निश्चय करके पुन: खोजनेका विचार करना और अशोकवाटिकामें ढूँढ़नेके विषयमें तरहतर हकी बातें सोचना १४- हनुमान्जीका अशोकवाटिकामें प्रवेश करके उसकी शोभा देखना तथा एक अशोक-वृक्षपर छिपे रहकर वहींसे सीताका अनुसन्धान करना १५- वनकी शोभा देखते हुए हनुमान्जीका एक चैत्यप्रासाद (मन्दिर)-के पास सीताको दयनीय अवस्थामें देखना, पहचानना और प्रसन्न होना १६- हनुमान्जीका मन-ही-मन सीताजीके शील और सौन्दर्यकी सराहना करते हुए उन्हें कष्टमें पड़ी देख स्वयं भी उनके लिये शोक करना १७- भयंकर राक्षसियोंसे घिरी हुर्इ सीताके दर्शनसे हनुमान्जीका प्रसन्न होना १८- अपनी स्त्रियोंसे घिरे हुए रावणका अशोक-वाटिकामें आगमन और हनुमान्जीका उसे देखना १९- रावणको देखकर दु:ख, भय और चिन्तामें डूबी हुर्इ सीताकी अवस्थाका वर्णन २०- रावणका सीताजीको प्रलोभन २१- सीताजीका रावणको समझाना और उसे श्रीरामके सामने नगण्य बताना २२- रावणका सीताको दो मासकी अवधि देना, सीताका उसे फटकारना, फिर रावणका उन्हें धमकाकर राक्षसियोंके नियन्त्रणमें रखकर स्त्रियोंसहित पुन: महलको लौट जाना २३- राक्षसियोंका सीताजीको समझाना २४- सीताजीका राक्षसियोंकी बात माननेसे इनकार कर देना तथा राक्षसियोंका उन्हें मारने-काटनेकी धमकी देना २५- राक्षसियोंकी बात माननेसे इनकार करके शोक-संतप्त सीताका विलाप करना २६- सीताका करुण-विलाप तथा अपने प्राणोंको त्याग देनेका निश्चय करना २७- त्रिजटाका स्वप्न, राक्षसोंके विनाश और श्रीरघुनाथजीकी विजयकी शुभ सूचना. २८- विलाप करती हुर्इ सीताका प्राण-त्यागके लिये उद्यत होना २९- सीताजीके शुभ शकुन ३०- सीताजीसे वार्तालाप करनेके विषयमें हनुमान्जीका विचार करना ३१- हनुमान्जीका सीताको सुनानेके लिये श्रीराम-कथाका वर्णन करना ३२- सीताजीका तर्क-वितर्क ३३- सीताजीका हनुमान्जीको अपना परिचय देते हुए अपने वनगमन और अपहरणका वृत्तान्त बताना ३४- सीताजीका हनुमान्जीके प्रति संदेह और उसका समाधान तथा हनुमान्जीके द्वारा श्रीरामचन्द्रजीके गुणोंका गान ३५- सीताजीके पूछनेपर हनुमान्जीका श्रीरामके शारीरिक चिह्नों और गुणोंका वर्णन करना तथा नर-वानरकी मित्रताका प्रसङ्ग सुनाकर सीताजीके मनमें विश्वास उत्पन्न करना ३६- हनुमान्जीका सीताको मुद्रिका देना, सीताका ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान्जीका श्रीरामके सीताविषयक प्रेमका वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना ३७- सीताका हनुमान्जीसे श्रीरामको शीघ्र बुलानेका आग्रह, हनुमान्जीका सीतासे अपने साथ चलनेका अनुरोध तथा सीताका अस्वीकार करना ३८- सीताजीका हनुमान्जीको पहचानके रूपमें चित्रकूट पर्वतपर घटित हुए एक कौएके प्रसङ्गको सुनाना, भगवान् श्रीरामको शीघ्र बुला लानेके लिये अनुरोध करना और चूड़ामणि देना ३९- चूड़ामणि लेकर जाते हुए हनुमान्जीसे सीताका श्रीराम आदिको उत्साहित करनेके लिये कहना तथा समुद्र-तरणके विषयमें शङ्कित हुर्इ सीताको वानरोंका पराक्रम बताकर हनुमान्जीका आश्वासन देना ४०- सीताका श्रीरामसे कहनेके लिये पुन: संदेश देना तथा हनुमान्जीका उन्हें आश्वासन दे उत्तर दिशाकी ओर जाना ४१- हनुमान्जीके द्वारा प्रमदावन (अशोक-वाटिका)-का विध्वंस ४२- राक्षसियोंके मुखसे एक वानरके द्वारा प्रमदावनके विध्वंसका समाचार सुनकर रावणका किंकर नामक राक्षसोंको भेजना और हनुमान्जीके द्वारा उन सबका संहार ४३- हनुमान्जीके द्वारा चैत्यप्रासादका विध्वंस तथा उसके रक्षकोंका वध ४४- प्रहस्त-पुत्र जम्बुमालीका वध ४५- मन्त्रीके सात पुत्रोंका वध ४६- रावणके पाँच सेनापतियोंका वध ४७- रावणपुत्र अक्षकुमारका पराक्रम और वध ४८- इन्द्रजित् और हनुमान्जीका युद्ध, उसके दिव्यास्त्रके बन्धनमें बँधकर हनुमान्जीका रावणके दरबारमें उपस्थित होना ४९- रावणके प्रभावशाली स्वरूपको देखकर हनुमान्जीके मनमें अनेक प्रकारके विचारोंका उठना ५०- रावणका प्रहस्तके द्वारा हनुमान्जीसे लङ्कामें आनेका कारण पुछवाना और हनुमान्का अपनेको श्रीरामका दूत बताना. ५१- हनुमान्जीका श्रीरामके प्रभावका वर्णन करते हुए रावणको समझाना ५२- विभीषणका दूतके वधको अनुचित बताकर उसे दूसरा कोर्इ दण्ड देनेके लिये कहना तथा रावणका उनके अनुरोधको स्वीकार कर लेना ५३- राक्षसोंका हनुमान्जीकी पूँछमें आग लगाकर उन्हें नगरमें घुमाना ५४- लङ्कापुरीका दहन और राक्षसोंका विलाप ५५- सीताजीके लिये हनुमान्जीकी चिन्ता और उसका निवारण ५६- हनुमान्जीका पुन: सीताजीसे मिलकर लौटना और समुद्रको लाँघना ५७- हनुमान्जीका समुद्रको लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदोंसे मिलना ५८- जाम्बवान्के पूछनेपर हनुमान्जीका अपनी लङ्कायात्राका सारा वृत्तान्त सुनाना ५९- हनुमान्जीका सीताकी दुरवस्था बताकर वानरोंको लङ्कापर आक्रमण करनेके लिये उत्तेजित करना ६०- अङ्गदका लङ्काको जीतकर सीताको ले आनेका उत्साहपूर्ण विचार और जाम्बवान्के द्वारा उसका निवारण ६१- वानरोंका मधुवनमें जाकर वहाँके मधु एवं फलोंका मनमाना उपभोग करना और वनरक्षकको घसीटना ६२- वानरोंद्वारा मधुवनके रक्षकों और दधिमुखका पराभव तथा सेवकोंसहित दधिमुखका सुग्रीवके पास जाना ६३- दधिमुखसे मधुवनके विध्वंसका समाचार सुनकर सुग्रीवका हनुमान् आदि वानरोंकी सफलताके विषयमें अनुमान ६४- दधिमुखसे सुग्रीवका संदेश सुनकर अङ्गद-हनुमान् आदि वानरोंका किष्किन्धामें पहुँचना और हनुमान्जीका श्रीरामको प्रणाम करके सीता देवीके दर्शनका समाचार बताना ६५- हनुमान्जीका श्रीरामको सीताका समाचार सुनाना ६६- चूड़ामणिको देखकर और सीताका समाचार पाकर श्रीरामका उनके लिये विलाप ६७- हनुमान्जीका भगवान् श्रीरामको सीताका संदेश सुनाना ६८- हनुमान्जीका सीताके संदेह और अपने द्वारा उनके निवारणका वृत्तान्त बताना ६. युद्धकाण्ड १- हनुमान्जीकी प्रशंसा करके श्रीरामका उन्हें हृदयसे लगाना और समुद्रको पार करनेके लिये चिन्तित होना २- सुग्रीवका श्रीरामको उत्साह प्रदान करना ३- हनुमान्जीका लङ्काके दुर्ग, फाटक, सेनाविभा ग और संक्रम आदिका वर्णन करके भगवान् श्रीरामसे सेनाको कूच करनेकी आज्ञा देनेके लिये प्रार्थना करना ४- श्रीराम आदिके साथ वानर-सेनाका प्रस्थान और समुद्र-तटपर उसका पड़ाव ५- श्रीरामका सीताके लिये शोक और विलाप ६- रावणका कर्तव्य-निर्णयके लिये अपने मन्त्रियोंसे समुचित सलाह देनेका अनुरोध करना ७- राक्षसोंका रावण और इन्द्रजित्के बल-पराक्रमका वर्णन करते हुए उसे रामपर विजय पानेका विश्वास दिलाना ८- प्रहस्त, दुर्मुख, वज्रदंष्ट्र, निकुम्भ और वज्रहनुका रावणके सामने शत्रु-सेनाको मार गिरानेका उत्साह दिखाना ९- विभीषणका रावणसे श्रीरामकी अजेयता बताकर सीताको लौटा देनेके लिये अनुरोध करना १०- विभीषणका रावणके महलमें जाना, उसे अपशकुनोंका भय दिखाकर सीताको लौटा देनेके लिये प्रार्थना करना और रावणका उनकी बात न मानकर उन्हें वहाँसे विदा कर देना ११- रावण और उसके सभासदोंका सभाभवनमें एकत्र होना १२-नगरकी रक्षाके लिये सैनिकोंकी नियुक्ति, रावणका सीताके प्रति अपनी आसक्ति बताकर उनके हरणका प्रसंग बताना और भावी कर्तव्यके लिये सभासदोंकी सम्मति माँगना, कुम्भकर्णका पहले तो उसे फटकारना, फिर समस्त शत्रुओंके वधका स्वयं ही भार उठाना १३- महापार्श्वका रावणको सीतापर बलात्कारके लिये उकसाना और रावणका शापके कारण अपनेको ऐसा करनेमें असमर्थ बताना तथा अपने पराक्रमके गीत गाना १४- विभीषणका रामको अजेय बताकर उनके पास सीताको लौटा देनेकी सम्मति देना १५- इन्द्रजित्द्वारा विभीषणका उपहास तथा विभीषणका उसे फटकारकर सभामें अपनी उचित सम्मति देना १६- रावणके द्वारा विभीषणका तिरस्कार और विभीषणका भी उसे फटकारकर चल देना १७- विभीषणका श्रीरामकी शरणमें आना और श्रीरामका अपने मन्त्रियोंके साथ उन्हें आश्रय देनेके विषयमें विचार करना १८- भगवान् श्रीरामका शरणागतकी रक्षाका महत्त्व एवं अपना व्रत बताकर विभीषणसे मिलना १९- विभीषणका आकाशसे उतरकर भगवान् श्रीरामके चरणोंकी शरण लेना, उनके पूछनेपर रावणकी शक्तिका परिचय देना और श्रीरामका रावण-वधकी प्रतिज्ञा करके विभीषणको लङ्काके राज्यपर अभिषिक्त कर उनकी सम्मतिसे समुद्रतटपर धरना देनेके लिये बैठना २०- शार्दूलके कहनेसे रावणका शुकको दूत बनाकर सुग्रीवके पास संदेश भेजना, वहाँ वानरोंद्वारा उसकी दुर्दशा, श्रीरामकी कृपासे उसका संकटसे छूटना और सुग्रीवका रावणके लिये उत्तर देना २१- श्रीरामका समुद्रके तटपर कुशा बिछाकर तीन दिनोंतक धरना देनेपर भी समुद्रके दर्शन न देनेसे कुपित हो उसे बाण मारकर विक्षुब्ध कर देना २२- समुद्रकी सलाहके अनुसार नलके द्वारा सागरपर सौ योजन लंबे पुलका निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम आदिसहित वानरसेनाका उस पार पहुँचकर पड़ाव डालना २३- श्रीरामका लक्ष्मणसे उत्पातसूचक लक्षणोंका वर्णन और लङ्कापर आक्रमण २४- श्रीरामका लक्ष्मणसे लङ्काकी शोभाका वर्णन करके सेनाको व्यूहबद्ध खड़ी होनेके लिये आदेश देना, श्रीरामकी आज्ञासे बन्धनमुक्त हुए शुकका रावणके पास जाकर उनकी सैन्यशक्तिकी प्रबलता बताना तथा रावणका अपने बलकी डींग हाँकना २५- रावणका शुक और सारणको गुप्तरूपसे वानरसेनामें भेजना, विभीषणद्वारा उनका पकड़ा जाना, श्रीरामकी कृपासे छुटकारा पाना तथा श्रीरामका संदेश लेकर लङ्कामें लौटकर उनका रावणको समझाना २६- सारणका रावणको पृथक्-पृथक् वानरयूथ पतियोंका परिचय देना २७- वानरसेनाके प्रधान यूथपतियोंका परिचय २८- शुकके द्वारा सुग्रीवके मन्त्रियोंका, मैन्द और द्विविदका, हनुमान्का, श्रीराम, लक्ष्मण, विभीषण और सुग्रीवका परिचय देकर वानर-सेनाकी संख्याका निरूपण करना २९- रावणका शुक और सारणको फटकारकर अपने दरबारसे निकाल देना, उसके भेजे हुए गुप्तचरोंका श्रीरामकी दयासे वानरोंके चंगुलसे छूटकर लङ्कामें आना ३०- रावणके भेजे हुए गुप्तचरों एवं शार्दूलका उससे वानर-सेनाका समाचार बताना और मुख्य-मुख्य वीरोंका परिचय देना ३१- मायारचित श्रीरामका कटा मस्तक दिखाकर रावणद्वारा सीताको मोहमें डालनेका प्रयत्न ३२- श्रीरामके मारे जानेका विश्वास करके सीताका विलाप तथा रावणका सभामें जाकर मन्त्रियोंके सलाहसे युद्धविषयक उद्योग करना ३३- सरमाका सीताको सान्त्वना देना, रावणकी मायाका भेद खोलना, श्रीरामके आगमनका प्रिय समाचार सुनाना और उनके विजयी होनेका विश्वास दिलाना ३४- सीताके अनुरोधसे सरमाका उन्हें मन्त्रियोंसहित रावणका निश्चित विचार बताना ३५- माल्यवान्का रावणको श्रीरामसे संधि करनेके लिये समझाना ३६- माल्यवान्पर आक्षेप और नगरकी रक्षाका प्रबन्ध करके रावणका अपने अन्त:पुरमें जाना ३७- विभीषणका श्रीरामसे रावणद्वारा किये गये लङ्काकी रक्षाके प्रबन्धका वर्णन तथा श्रीरामद्वारा लङ्काके विभिन्न द्वारोंपर आक्रमण करनेके लिये अपने सेनापतियोंकी नियुक्ति ३८- श्रीरामका प्रमुख वानरोंके साथ सुवेल पर्वतपर चढ़कर वहाँ रातमें निवास करना ३९- वानरोंसहित श्रीरामका सुवेल-शिखरसे लङ्कापुरीका निरीक्षण करना ४०- सुग्रीव और रावणका मल्लयुद्ध. ४१- श्रीरामका सुग्रीवको दु:साहससे रोकना, लङ्काके चारों द्वारोंपर वानरसैनिकोंकी नियुक्ति, रामदूत अङ्गदका रावणके महलमें पराक्रम तथा वानरोंके आक्रमणसे राक्षसोंको भय ४२- लङ्कापर वानरोंकी चढ़ार्इ तथा राक्षसोंके साथ उनका घोर युद्ध ४३- द्वन्द्वयुद्धमें वानरोंद्वारा राक्षसोंकी पराजय ४४- रातमें वानरों और राक्षसोंका घोर युद्ध, अङ्गदके द्वारा इन्द्रजित्की पराजय, मायासे अदृश्य हुए इन्द्रजित्का नागमय बाणोंद्वारा श्रीराम और लक्ष्मणको बाँधना ४५- इन्द्रजित्के बाणोंसे श्रीराम और लक्ष्मणका अचेत होना और वानरोंका शोक करना ४६- श्रीराम और लक्ष्मणको मूर्च्छित देख वानरोंका शोक, इन्द्रजित्का हर्षोद्गार, विभीषणका सुग्रीवको समझाना, इन्द्रजित्का लङ्कामें जाकर पिताको शत्रुवधका वृत्तान्त बताना और प्रसन्न हुए रावणके द्वारा अपने पुत्रका अभिनन्दन ४७- वानरोंद्वारा श्रीराम और लक्ष्मणकी रक्षा, रावणकी आज्ञासे राक्षसियोंका सीताको पुष्पकविमानद्वारा रणभूमिमें ले जाकर श्रीराम और लक्ष्मणका दर्शन कराना और सीताका दु:खी होकर रोना ४८- सीताका विलाप और त्रिजटाका उन्हें समझा-बुझाकर श्रीराम-लक्ष्मणके जीवित होनेका विश्वास दिलाकर पुन: लङ्कामें ही लौटा लाना ४९- श्रीरामका सचेत होकर लक्ष्मणके लिये विलाप करना और स्वयं प्राणत्यागका विचार करके वानरोंको लौट जानेकी आज्ञा देना ५०- विभीषणको इन्द्रजित् समझकर वानरोंका पलायन और सुग्रीवकी आज्ञासे जाम्बवान्का उन्हें सान्त्वना देना, विभीषणका विलाप और सुग्रीवका उन्हें समझाना, गरुड़का आना और श्रीराम-लक्ष्मणको नागपाशसे मुक्त करके चला जाना ५१- श्रीरामके बन्धनमुक्त होनेका पता पाकर चिन्तित हुए रावणका धूम्राक्षको युद्धके लिये भेजना और सेनासहित धूम्राक्षका नगरसे बाहर आना ५२- धूम्राक्षका युद्ध और हनुमान्जीके द्वारा उसका वध ५३- वज्रदंष्ट्रका सेनासहित युद्धके लिये प्रस्थान, वानरों और राक्षसोंका युद्ध, वज्रदंष्ट्रद्वारा वानरोंका तथा अङ्गदद्वारा राक्षसोंका संहार ५४- वज्रदंष्ट्र और अङ्गदका युद्ध तथा अङ्गदके हाथसे उस निशाचरका वध ५५- रावणकी आज्ञासे अकम्पन आदि राक्षसोंका युद्धमें आना और वानरोंके साथ उनका घोर युद्ध ५६- हनुमान्जीके द्वारा अकम्पनका वध ५७- प्रहस्तका रावणकी आज्ञासे विशाल सेनासहित युद्धके लिये प्रस्थान ५८- नीलके द्वारा प्रहस्तका वध ५९- प्रहस्तके मारे जानेसे दु:खी हुए रावणका स्वयं ही युद्धके लिये पधारना, उसके साथ आये हुए मुख्य वीरोंका परिचय, रावणकी मारसे सुग्रीवका अचेत होना, लक्ष्मणका युद्धमें आना, हनुमान् और रावणमें थप्पड़ोंकी मार, रावणद्वारा नीलका मूचिर्छत होना, लक्ष्मणका शक्तिके आघातसे मूर्च्छित एवं सचेत होना तथा श्रीरामसे परास्त होकर रावणका लङ्कामें घुस जाना ६०- अपनी पराजयसे दु:खी हुए रावणकी आज्ञासे सोये हुए कुम्भकर्णका जगाया जाना और उसे देखकर वानरोंका भयभीत होना ६१- विभीषणका श्रीरामसे कुम्भकर्णका परिचय देना और श्रीरामकी आज्ञासे वानरोंका युद्धके लिये लङ्काके द्वारोंपर डट जाना ६२- कुम्भकर्णका रावणके भवनमें प्रवेश तथा रावणका रामसे भय बताकर उसे शत्रुसेनाके विनाशके लिये प्रेरित करना ६३- कुम्भकर्णका रावणको उसके कुकृत्योंके लिये उपालम्भ देना और उसे धैर्य बँधाते हुए युद्धविषयक उत्साह प्रकट करना ६४- महोदरका कुम्भकर्णके प्रति आक्षेप करके रावणको बिना युद्धके ही अभीष्ट वस्तुकी प्राप्तिका उपाय बताना ६५- कुम्भकर्णकी रणयात्रा ६६- कुम्भकर्णके भयसे भागे हुए वानरोंका अङ्गदद्वारा प्रोत्साहन और आवाहन, कुम्भकर्णद्वारा वानरोंका संहार, पुन: वानर-सेनाका पलायन और अङ्गदका उसे समझा-बुझाकर लौटाना ६७- कुम्भकर्णका भयंकर युद्ध और श्रीरामके हाथसे उसका वध ६८- कुम्भकर्णके वधका समाचार सुनकर रावणका विलाप ६९- रावणके पुत्रों और भाइयोंका युद्धके लिये जाना और नरान्तकका अङ्गदके द्वारा वध ७०- हनुमान्जीके द्वारा देवान्तक और त्रिशिराका, नीलके द्वारा महोदरका तथा ऋषभके द्वारा महापार्श्वका वध ७१- अतिकायका भयंकर युद्ध और लक्ष्मणके द्वारा उसका वध ७२- रावणकी चिन्ता तथा उसका राक्षसोंको पुरीकी रक्षाके लिये सावधान रहनेका आदेश ७३- इन्द्रजित्के ब्रह्मास्त्रसे वानरसेनासहित श्रीराम और लक्ष्मणका मूर्च्छित होना ७४- जाम्बवान्के आदेशसे हनुमान्जीका हिमालयसे दिव्य ओषधियोंके पर्वतको लाना और उन ओषधियोंकी गन्धसे श्रीराम, लक्ष्मण एवं समस्त वानरोंका पुन: स्वस्थ होना ७५- लङ्कापुरीका दहन तथा राक्षसों और वानरोंका भयंकर युद्ध ७६- अङ्गदके द्वारा कम्पन और प्रजङ्घका, द्विविदके द्वारा शोणिताक्षका, मैन्दके द्वारा यूपाक्षका और सुग्रीवके द्वारा कुम्भका वध ७७- हनुमान्के द्वारा निकुम्भका वध ७८- रावणकी आज्ञासे मकराक्षका युद्धके लिये पस्र थान ७९- श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा मकराक्षका वध ८०- रावणकी आज्ञासे इन्द्रजित्का घोर युद्ध तथा उसके वधके विषयमें श्रीराम और लक्ष्मणकी बातचीत ८१- इन्द्रजित्के द्वारा मायामयी सीताका वध ८२- हनुमान्जीके नेतृत्वमें वानरों और निशाचरोंका युद्ध, हनुमान्जीका श्रीरामके पास लौटना और इन्द्रजित्का निकुम्भिला-मन्दिरमें जाकर होम करना ८३- सीताके मारे जानेकी बात सुनकर श्रीरामका शोकसे मूर्च्छित होना और लक्ष्मणका उन्हें समझाते हुए पुरुषार्थके लिये उद्यत होना ८४- विभीषणका श्रीरामको इन्द्रजित्की मायाका रहस्य बताकर सीताके जीवित होनेका विश्वास दिलाना और लक्ष्मणको सेनासहित निकुम्भिला-मन्दिरमें भेजनेके लिये अनुरोध करना ८५- विभीषणके अनुरोधसे श्रीरामचन्द्रजीका लक्ष्मणको इन्द्रजित्के वधके लिये जानेकी आज्ञा देना और सेनासहित लक्ष्मणका निकुम्भिला-मन्दिरके पास पहुँचना ८६- वानरों और राक्षसोंका युद्ध, हनुमान्जीके द्वारा राक्षससेनाका संहार और उनका इन्द्रजित्को द्वन्द्वयुद्धके लिये ललकारना तथा लक्ष्मणका उसे देखना ८७- इन्द्रजित् और विभीषणकी रोषपूर्ण बातचीत ८८- लक्ष्मण और इन्द्रजित्की परस्पर रोषभरी बातचीत और घोर युद्ध ८९- विभीषणका राक्षसोंपर प्रहार, उनका वानरयूथ पतियोंको प्रोत्साहन देना, लक्ष्मणद्वारा इन्द्रजित्के सारथिका और वानरोंद्वारा उसके घोड़ोंका वध ९०- इन्द्रजित् और लक्ष्मणका भयंकर युद्ध तथा इन्द्रजित्का वध ९१- लक्ष्मण और विभीषण आदिका श्रीरामचन्द्रजीके पास आकर इन्द्रजित्के वधका समाचार सुनाना, प्रसन्न हुए श्रीरामके द्वारा लक्ष्मणको हृदयसे लगाकर उनकी प्रशंसा तथा सुषेणद्वारा लक्ष्मण आदिकी चिकित्सा ९२- रावणका शोक तथा सुपार्श्वके समझानेसे उसका सीता-वधसे निवृत्त होना ९३- श्रीरामद्वारा राक्षससेनाका संहार ९४- राक्षसियोंका विलाप ९५- रावणका अपने मन्त्रियोंको बुलाकर शत्रुवधवि षयक अपना उत्साह प्रकट करना और सबके साथ रणभूमिमें आकर पराक्रम दिखाना ९६- सुग्रीवद्वारा राक्षससेनाका संहार और विरूपाक्षका वध ९७- सुग्रीवके साथ महोदरका घोर युद्ध तथा वध ९८- अङ्गदके द्वारा महापार्श्वका वध. ९९- श्रीराम और रावणका युद्ध १००- राम और रावणका युद्ध, रावणकी शक्तिसे लक्ष्मणका मूर्च्छित होना तथा रावणका युद्धसे भागना १०१- श्रीरामका विलाप तथा हनुमान्जीकी लायी हुर्इ ओषधिके सुषेणद्वारा किये गये प्रयोगसे लक्ष्मणका सचेत हो उठना १०२- इन्द्रके भेजे हुए रथपर बैठकर श्रीरामका रावणके साथ युद्ध करना १०३- श्रीरामका रावणको फटकारना और उनके द्वार घायल किये गये रावणको सारथिका रणभूमिसे बाहर ले जाना १०४- रावणका सारथिको फटकारना और सारथिका अपने उत्तरसे रावणको संतुष्ट करके उसके रथको रणभूमिमें पहुँचाना १०५- अगस्त्य मुनिका श्रीरामको विजयके लिये ‘आदित्यहृदय’ के पाठकी सम्मति देना १०६- रावणके रथको देख श्रीरामका मातलिको सावधान करना, रावणकी पराजयके सूचक उत्पातों तथा रामकी विजय सूचित करनेवाले शुभ शकुनोंका वर्णन १०७- श्रीराम और रावणका घोर युद्ध १०८- श्रीरामके द्वारा रावणका वध १०९- विभीषणका विलाप और श्रीरामका उन्हें समझाकर रावणके अन्त्येष्टि-संस्कारके लिये आदेश देना ११०- रावणकी स्त्रियोंका विलाप १११- मन्दोदरीका विलाप तथा रावणके शवका दाह-संस्कार ११२- विभीषणका राज्याभिषेक और श्रीरघुनाथजीका हनुमान्जीके द्वारा सीताके पास संदेश भेजना ११३- हनुमान्जीका सीताजीसे बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीरामको सुनाना ११४- श्रीरामकी आज्ञासे विभीषणका सीताको उनके समीप लाना और सीताका प्रियतमके मुखचन्द्रका दर्शन करना ११५- सीताके चरित्रपर संदेह करके श्रीरामका उन्हें ग्रहण करनेसे इनकार करना और अन्यत्र जानेके लिये कहना ११६- सीताका श्रीरामको उपालम्भपूर्ण उत्तर देकर अपने सतीत्वकी परीक्षा देनेके लिये अग्निमें प्रवेश करना ११७- भगवान् श्रीरामके पास देवताओंका आगमन तथा ब्रह्माद्वारा उनकी भगवत्ताका प्रतिपादन एवं स्तवन ११८- मूर्तिमान् अग्निदेवका सीताको लेकर चितासे प्रकट होना और श्रीरामको समर्पित करके उनकी पवित्रताको प्रमाणित करना तथा श्रीरामका सीताको सहर्ष स्वीकार करना ११९- महादेवजीकी आज्ञासे श्रीराम और लक्ष्मणका विमानद्वारा आये हुए राजा दशरथको प्रणाम करना और दशरथका दोनों पुत्रों तथा सीताको आवश्यक संदेश दे इन्द्रलोकको जाना १२०- श्रीरामके अनुरोधसे इन्द्रका मरे हुए वानरोंको जीवित करना, देवताओंका प्रस्थान और वानरसेनाका विश्राम १२१- श्रीरामका अयोध्या जानेके लिये उद्यत होना और उनकी आज्ञासे विभीषणका पुष्पकविमानको मँगाना १२२- श्रीरामकी आज्ञासे विभीषणद्वारा वानरोंका विशेष सत्कार तथा सुग्रीव और विभीषणसहित वानरोंको साथ लेकर श्रीरामका पुष्पकविमानद्वारा अयोध्याको प्रस्थान करना १२३- अयोध्याकी यात्रा करते समय श्रीरामका सीताजीको मार्गके स्थान दिखाना १२४- श्रीरामका भरद्वाज-आश्रमपर उतरकर महर्षिसे मिलना और उनसे वर पाना १२५- हनुमान्जीका निषादराज गुह तथा भरतजीको श्रीरामके आगमनकी सूचना देना और प्रसन्न हुए भरतका उन्हें उपहार देनेकी घोषणा करना १२६- हनुमान्जीका भरतको श्रीराम, लक्ष्मण और सीताके वनवाससम्बन्धी सारे वृत्तान्तोंको सुनाना १२७- अयोध्यामें श्रीरामके स्वागतकी तैयारी, भरतके साथ सबका श्रीरामकी अगवानीके लिये नन्दिग्राममें पहुँचना, श्रीरामका आगमन, भरत आदिके साथ उनका मिलाप तथा पुष्पकविमानको कुबेरके पास भेजना १२८- भरतका श्रीरामको राज्य लौटाना, श्रीरामकी नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरोंकी विदार्इ तथा ग्रन्थका माहात्म्य ७. उत्तरकाण्ड १- श्रीरामके दरबारमें महर्षियोंका आगमन, उनके साथ उनकी बातचीत तथा श्रीरामके पश्र न २- महर्षि अगस्त्यके द्वारा पुलस्त्यके गुण और तपस्याका वर्णन तथा उनसे विश्रवा मुनिकी उत्पत्तिका कथन ३- विश्रवासे वैश्रवण (कुबेर)-की उत्पत्ति, उनकी तपस्या, वरप्राप्ति तथा लङ्कामें निवास ४- राक्षसवंशका वर्णन—हेति, विद्युत्केश और सुकेशकी उत्पत्ति ५- सुकेशके पुत्र माल्यवान्, सुमाली और मालीकी संतानोंका वर्णन ६- देवताओंका भगवान् शङ्करकी सलाहसे राक्षसोंके वधके लिये भगवान् विष्णुकी शरणमें जाना और उनसे आश्वासन पाकर लौटना, राक्षसोंका देवताओंपर आक्रमण और भगवान् विष्णुका उनकी सहायताके लिये आना ७- भगवान् विष्णुद्वारा राक्षसोंका संहार और पलायन ८- माल्यवान्का युद्ध और पराजय तथा सुमाली आदि सब राक्षसोंका रसातलमें प्रवेश ९- रावण आदिका जन्म और उनका तपके लिये गोकर्ण-आश्रममें जाना १०- रावण आदिकी तपस्या और वर-प्राप्ति ११- रावणका संदेश सुनकर पिताकी आज्ञासे कुबेरका लङ्काको छोड़कर कैलासपर जाना, लङ्कामें रावणका राज्याभिषेक तथा राक्षसोंका निवास १२- शूर्पणखा तथा रावण आदि तीनों भाइयोंका विवाह और मेघनादका जन्म १३- रावणद्वारा बनवाये गये शयनागारमें कुम्भकर्णका सोना, रावणका अत्याचार, कुबेरका दूत भेजकर उसे समझाना तथा कुपित हुए रावणका उस दूतको मार डालना १४- मन्त्रियोंसहित रावणका यक्षोंपर आक्रमण और उनकी पराजय १५- माणिभद्र तथा कुबेरकी पराजय और रावणद्वारा पुष्पकविमानका अपहरण १६- नन्दीश्वरका रावणको शाप, भगवान् शङ्करद्वारा रावणका मान-भङ्ग तथा उनसे चन्द्रहास नामक खड्गकी प्राप्ति १७- रावणसे तिरस्कृत ब्रह्मर्षि कन्या वेदवतीका उसे शाप देकर अग्निमें प्रवेश करना और दूसरे जन्ममें सीताके रूपमें प्रादुर्भूत होना १८- रावणद्वारा मरुत्तकी पराजय तथा इन्द्र आदि देवताओंका मयूर आदि पक्षियोंको वरदान देना १९- रावणके द्वारा अनरण्यका वध तथा उनके द्वारा उसे शापकी प्राप्ति २०- नारदजीका रावणको समझाना, उनके कहनेसे रावणका युद्धके लिये यमलोकको जाना तथा नारदजीका इस युद्धके विषयमें विचार करना २१- रावणका यमलोकपर आक्रमण और उसके द्वारा यमराजके सैनिकोंका संहार २२- यमराज और रावणका युद्ध, यमका रावणके वधके लिये उठाये हुए कालदण्डको ब्रह्माजीके कहनेसे लौटा लेना, विजयी रावणका यमलोकसे प्रस्थान २३- रावणके द्वारा निवातकवचोंसे मैत्री, कालकेयोंका वध तथा वरुणपुत्रोंकी पराजय २४- रावणद्वारा अपहृत हुर्इ देवता आदिकी कन्याओं और स्त्रियोंका विलाप एवं शाप, रावणका रोती हुर्इ शूर्पणखाको आश्वासन देना और उसे खरके साथ दण्डकारण्यमें भेजना २५- यज्ञोंद्वारा मेघनादकी सफलता, विभीषणका रावणको पर-स्त्री-हरणके दोष बताना, कुम्भीनसीको आश्वासन दे मधुको साथ ले रावणका देवलोकपर आक्रमण करना २६- रावणका रम्भापर बलात्कार करना और नल-कूबरका रावणको भयंकर शाप देना २७- सेनासहित रावणका इन्द्रलोकपर आक्रमण, इन्द्रकी भगवान् विष्णुसे सहायताके लिये प्रार्थना, भविष्यमें रावण-वधकी प्रतिज्ञा करके विष्णुका इन्द्रको लौटाना, देवताओं और राक्षसोंका युद्ध तथा वसुके द्वारा सुमालीका वध २८- मेघनाद और जयन्तका युद्ध, पुलोमाका जयन्तको अन्यत्र ले जाना, देवराज इन्द्रका युद्धभूमिमें पदार्पण, रुद्रों तथा मरुद्गणोंद्वारा राक्षससेनाका संहार और इन्द्र तथा रावणका युद्ध २९- रावणका देवसेनाके बीचसे होकर निकलना, देवताओंका उसे कैद करनेके लिये प्रयत्न, मेघनादका मायाद्वारा इन्द्रको बन्दी बनाना तथा विजयी होकर सेनासहित लङ्काको लौटना ३०- ब्रह्माजीका इन्द्रजित्को वरदान देकर इन्द्रको उसकी कैदसे छुड़ाना और उनके पूर्वकृत पापकर्मको याद दिलाकर उनसे वैष्णवयज्ञका अनुष्ठान करनेके लिये कहना, उस यज्ञको पूर्ण करके इन्द्रका स्वर्गलोकमें जाना ३१- रावणका माहिष्मतीपुरीमें जाना और वहाँके राजा अर्जुनको न पाकर मन्त्रियोंसहित उसका विन्ध्यगिरिके समीप नर्मदामें नहाकर भगवान् शिवकी आराधना करना ३२- अर्जुनकी भुजाओंसे नर्मदाके प्रवाहका अवरुद्ध होना, रावणके पुष्पोपहारका बह जाना, फिर रावण आदि निशाचरोंका अर्जुनके साथ युद्ध तथा अर्जुनका रावणको कैद करके अपने नगरमें ले जाना ३३- पुलस्त्यजीका रावणको अर्जुनकी कैदसे छुटकारा दिलाना ३४- वालीके द्वारा रावणका पराभव तथा रावणका उन्हें अपना मित्र बनाना ३५- हनुमान्जीकी उत्पत्ति, शैशवावस्थामें इनका सूर्य, राहु और ऐरावतपर आक्रमण, इन्द्रके वज्रसे इनकी मूर्च्छा, वायुके कोपसे संसारके प्राणियोंको कष्ट और उन्हें प्रसन्न करनेके लिये देवताओंसहित ब्रह्माजीका उनके पास जाना ३६- ब्रह्मा आदि देवताओंका हनुमान्जीको जीवित करके नाना प्रकारके वरदान देना और वायुका उन्हें लेकर अञ्जनाके घर जाना, ऋषियोंके शापसे हनुमान्जीको अपने बलकी विस्मृति, श्रीरामका अगस्त्य आदि ऋषियोंसे अपने यज्ञमें पधारनेके लिये प्रस्ताव करके उन्हें विदा देना ३७- श्रीरामका सभासदोंके साथ राजसभामें बैठना ३८- श्रीरामके द्वारा राजा जनक, युधाजित्, प्रतर्दन तथा अन्य नरेशोंकी विदार्इ ३९- राजाओंका श्रीरामके लिये भेंट देना और श्रीरामका वह सब लेकर अपने मित्रों, वानरों, रीछों और राक्षसोंको बाँट देना तथा वानर आदिका वहाँ सुखपूर्वक रहना ४०- वानरों, रीछों और राक्षसोंकी बिदार्इ ४१- कुबेरके भेजे हुए पुष्पकविमानका आना और श्रीरामसे पूजित एवं अनुगृहीत होकर अदृश्य हो जाना, भरतके द्वारा श्रीरामराज्यके विलक्षण प्रभावका वर्णन ४२- अशोकवनिकामें श्रीराम और सीताका विहार, गर्भिणी सीताका तपोवन देखनेकी इच्छा प्रकट करना और श्रीरामका इसके लिये स्वीकृति देना ४३- भद्रका पुरवासियोंके मुखसे सीताके विषयमें सुनी हुर्इ अशुभ चर्चासे श्रीरामको अवगत कराना ४४- श्रीरामके बुलानेसे सब भाइयोंका उनके पास आना ४५- श्रीरामका भाइयोंके समक्ष सर्वत्र फैले हुए लोकापवादकी चर्चा करके सीताको वनमें छोड़ आनेके लिये लक्ष्मणको आदेश देना ४६- लक्ष्मणका सीताको रथपर बिठाकर उन्हें वनमें छोड़नेके लिये ले जाना और गङ्गाजीके तटपर पहुँचना ४७- लक्ष्मणका सीताजीको नावसे गङ्गाजीके उस पार पहुँचाकर बड़े दु:खसे उन्हें उनके त्यागे जानेकी बात बताना ४८- सीताका दु:खपूर्ण वचन, श्रीरामके लिये उनका संदेश, लक्ष्मणका जाना और सीताका रोना ४९- मुनिकुमारोंसे समाचार पाकर वाल्मीकिका सीताके पास आ उन्हें सान्त्वना देना और आश्रममें लिवा ले जाना ५०- लक्ष्मण और सुमन्त्रकी बातचीत ५१- मार्गमें सुमन्त्रका दुर्वासाके मुखसे सुनी हुर्इ भृगुऋषिके शापकी कथा कहकर तथा भविष्यमें होनेवाली कुछ बातें बताकर दु:खी लक्ष्मणको शान्त करना. ५२- अयोध्याके राजभवनमें पहुँचकर लक्ष्मणका दु:खी श्रीरामसे मिलना और उन्हें सान्त्वना देना ५३- श्रीरामका कार्यार्थी पुरुषोंकी उपेक्षासे राजा नृगको मिलनेवाली शापकी कथा सुनाकर लक्ष्मणको देखभालके लिये आदेश देना ५४- राजा नृगका एक सुन्दर गड्ढा बनवाकर अपने पुत्रको राज्य दे स्वयं उसमें प्रवेश करके शाप भोगना ५५- राजा निमि और वसिष्ठका एक-दूसरेके शापसे देहत्याग ५६- ब्रह्माजीके कहनेसे वसिष्ठका वरुणके वीर्यमें आवेश, वरुणका उर्वशीके समीप एक कुम्भमें अपने वीर्यका आधान तथा मित्रके शापसे उर्वशीका भूतलमें राजा पुरूरवाके पास रहकर पुत्र उत्पन्न करना ५७- वसिष्ठका नूतन शरीर धारण और निमिका प्राणियोंके नयनोंमें निवास ५८- ययातिको शुक्राचार्यका शाप ५९- ययातिका अपने पुत्र पूरुको अपना बुढ़ापा देकर बदलेमें उसका यौवन लेना और भोगोंसे तृप्त होकर पुन: दीर्घकालके बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरुका अपने पिताकी गद्दीपर अभिषेक तथा यदुको शाप प्रक्षिप्त सर्ग १-श्रीरामके द्वारपर कार्यार्थी कुत्तेका आगमन और श्रीरामका उसे दरबारमें लानेका आदेश २- कुत्तेके प्रति श्रीरामका न्याय, उसकी इच्छाके अनुसार उसे मारनेवाले ब्राह्मणको मठाधीश बना देना और कुत्तेका मठाधीश होनेका दोष बताना ६०- श्रीरामके दरबारमें च्यवन आदि ऋषियोंका शुभागमन, श्रीरामके द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्यको पूर्ण करनेकी प्रतिज्ञा तथा ऋषियोंद्वारा उनकी प्रशंसा ६१- ऋषियोंका मधुको प्राप्त हुए वर तथा लवणासुरके बल और अत्याचारका वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भयको दूर करनेके लिये श्रीरघुनाथजीसे प्रार्थना करना ६२- श्रीरामका ऋषियोंसे लवणासुरके आहार-विहारके विषयमें पूछना और शत्रुघ्नकी रुचि जानकर उन्हें लवण-वधके कार्यमें नियुक्त करना ६३- श्रीरामद्वारा शत्रुघ्नका राज्याभिषेक तथा उन्हें लवणासुरके शूलसे बचनेके उपायका प्रतिपादन ६४- श्रीरामकी आज्ञाके अनुसार शत्रुघ्नका सेनाको आगे भेजकर एक मासके पश्चात् स्वयं भी प्रस्थान करना ६५- महर्षि वाल्मीकिका शत्रुघ्नको सुदासपुत्र कल्माषपादकी कथा सुनाना ६६- सीताके दो पुत्रोंका जन्म, वाल्मीकिद्वारा उनकी रक्षाकी व्यवस्था और इस समाचारसे प्रसन्न हुए शत्रुघ्नका वहाँसे प्रस्थान करके यमुनातटपर पहुँचना ६७- च्यवन मुनिका शत्रुघ्नको लवणासुरके शूलकी शक्तिका परिचय देते हुए राजा मान्धाताके वधका प्रसंग सुनाना ६८- लवणासुरका आहारके लिये निकलना, शत्रुघ्नका मधुपुरीके द्वारपर डट जाना और लौटे हुए लवणासुरके साथ उनकी रोषभरी बातचीत ६९- शत्रुघ्न और लवणासुरका युद्ध तथा लवणका वध ७०- देवताओंसे वरदान पा शत्रुघ्नका मधुरापुरीको बसाकर बारहवें वर्षमें वहाँसे श्रीरामके पास जानेका विचार करना ७१- शत्रुघ्नका थोड़े-से सैनिकोंके साथ अयोध्याको प्रस्थान, मार्गमें वाल्मीकिके आश्रममें रामचरितका गान सुनकर उन सबका आश्चर्यचकित होना ७२- वाल्मीकिजीसे विदा ले शत्रुघ्नजीका अयोध्यामें जाकर श्रीराम आदिसे मिलना और सात दिनोंतक वहाँ रहकर पुन: मधुपुरीको प्रस्थान करना ७३- एक ब्राह्मणका अपने मरे हुए बालकको राजद्वारपर लाना तथा राजाको ही दोषी बताकर विलाप करना ७४- नारदजीका श्रीरामसे एक तपस्वी शूद्रके अधर्माचरणको ब्राह्मण-बालककी मृत्युमें कारण बताना ७५- श्रीरामका पुष्पकविमानद्वारा अपने राज्यकी सभी दिशाओंमें घूमकर दुष्कर्मका पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशामें एक शूद्र तपस्वीके पास पहुँचना ७६- श्रीरामके द्वारा शम्बूकका वध, देवताओंद्वारा उनकी प्रशंसा, अगस्त्याश्रमपर महर्षि अगस्त्यके द्वारा उनका सत्कार और उनके लिये आभूषण-दान ७७- महर्षि अगस्त्यका एक स्वर्गीय पुरुषके शवभक्षणका प्रसंग सुनाना ७८- राजा श्वेतका अगस्त्यजीको अपने लिये घृणित आहारकी प्राप्तिका कारण बताते हुए ब्रह्माजीके साथ हुए अपनी वार्ताको उपस्थित करना और उन्हें दिव्य आभूषणका दान दे भूख-प्यासके कष्टसे मुक्त होना ७९- इक्ष्वाकुपुत्र राजा दण्डका राज्य ८०- राजा दण्डका भार्गव-कन्याके साथ बलात्कार ८१- शुक्रके शापसे सपरिवार राजा दण्ड और उनके राज्यका नाश ८२- श्रीरामका अगस्त्य-आश्रमसे अयोध्यापुरीको लौटना ८३- भरतके कहनेसे श्रीरामका राजसूय-यज्ञ करनेके विचारसे निवृत्त होना ८४- लक्ष्मणका अश्वमेध-यज्ञका प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुरकी कथा सुनाना, वृत्रासुरकी तपस्या और इन्द्रका भगवान् विष्णुसे उसके वधके लिये अनुरोध ८५- भगवान् विष्णुके तेजका इन्द्र और वज्र आदिमें प्रवेश, इन्द्रके वज्रसे वृत्रासुरका वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्रका अन्धकारमय प्रदेशमें जाना ८६- इन्द्रके बिना जगत्में अशान्ति तथा अश्वमेधके अनुष्ठानसे इन्द्रका ब्रह्महत्यासे मुक्त होना ८७- श्रीरामका लक्ष्मणको राजा इलकी कथा सुनाना—इलको एक-एक मासतक स्त्रीत्व और पुरुषत्वकी प्राप्ति ८८- इला और बुधका एक-दूसरेको देखना तथा बुधका उन सब स्त्रियोंको किंपुरुषी नाम देकर पर्वतपर रहनेके लिये आदेश देना ८९- बुध और इलाका समागम तथा पुरूरवाकी उत्पत्ति ९०- अश्वमेधके अनुष्ठानसे इलाको पुरुषत्वकी प्राप्ति ९१- श्रीरामके आदेशसे अश्वमेध-यज्ञकी तैयारी ९२- श्रीरामके अश्वमेध-यज्ञमें दान-मानकी विशेषता ९३- श्रीरामके यज्ञमें महर्षि वाल्मीकिका आगमन और उनका रामायणगानके लिये कुश और लवको आदेश ९४- लव-कुशद्वारा रामायण-काव्यका गान तथा श्रीरामका उसे भरी सभामें सुनना ९५- श्रीरामका सीतासे उनकी शुद्धता प्रमाणित करनेके लिये शपथ करानेका विचार ९६- महर्षि वाल्मीकिद्वारा सीताकी शुद्धताका समर्थन ९७- सीताका शपथ-ग्रहण और रसातलमें प्रवेश ९८- सीताके लिये श्रीरामका खेद, ब्रह्माजीका उन्हें समझाना और उत्तरकाण्डका शेष अंश सुननेके लिये प्रेरित करना ९९- सीताके रसातल-प्रवेशके पश्चात् श्रीरामकी जीवनचर्या, रामराज्यकी स्थिति तथा माताओंके परलोक-गमन आदिका वर्णन १००- केकयदेशसे ब्रह्मर्षि गार्ग्यका भेंट लेकर आना और उनके संदेशके अनुसार श्रीरामकी आज्ञासे कुमारोंसहित भरतका गन्धर्वदेशपर आक्रमण करनेके लिये प्रस्थान १०१- भरतका गन्धर्वोंपर आक्रमण और उनका संहार करके वहाँ दो सुन्दर नगर बसाकर अपने दोनों पुत्रोंको सौंपना और फिर अयोध्याको लौट आना १०२- श्रीरामकी आज्ञासे भरत और लक्ष्मणद्वारा कुमार अङ्गद और चन्द्रकेतुकी कारुपथ देशके विभिन्न राज्योंपर नियुक्ति १०३- श्रीरामके यहाँ कालका आगमन और एक कठोर शर्तके साथ उनका वार्ताके लिये उद्यत होना १०४- कालका श्रीरामचन्द्रजीको ब्रह्माजीका संदेश सुनाना और श्रीरामका उसे स्वीकार करना १०५- दुर्वासाके शापके भयसे लक्ष्मणका नियम भङ्ग करके श्रीरामके पास इनके आगमनका समाचार देनेके लिये जाना, श्रीरामका दुर्वासा मुनिको भोजन कराना और उनके चले जानेपर लक्ष्मणके लिये चिन्तित होना १०६- श्रीरामके त्याग देनेपर लक्ष्मणका सशरीर स्वर्गगमन १०७- वसिष्ठजीके कहनेसे श्रीरामका पुरवासियोंको अपने साथ ले जानेका विचार तथा कुश और लवका राज्याभिषेक करना १०८- श्रीरामचन्द्रजीका भाइयों, सुग्रीव आदि वानरों तथा रीछोंके साथ परमधाम जानेका निश्चय और विभीषण, हनुमान्, जाम्बवान्, मैन्द एवं द्विविदको इस भूतलपर ही रहनेका आदेश देना १०९- परमधाम जानेके लिये निकले हुए श्रीरामके साथ समस्त अयोध्यावासियोंका प्रस्थान ११०- भाइयोंसहित श्रीरामका विष्णुस्वरूपमें प्रवेश तथा साथ आये हुए सब लोगोंको संतानक-लोककी प्राप्ति १११- रामायण-काव्यका उपसंहार और इसकी महिमा